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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
शिष्याओं के मन को दुःखाना उचित नहीं समझा । आपने अपने मन से ही फाल्गुन शुक्ला बारस के दिन संथारा कर लिया। दूसरे दिन जब साध्वियाँ भिक्षा के लिए जाने लगीं, तब उन्होंने आपसे निवेदन किया कि हम आपके लिए भिक्षा में क्या लावें तब आपने कहा कि मुझे आहार नहीं करना है। तीन दिन तक यही क्रम चला। चौथे दिन साध्वियों के आग्रह पर आपने स्पष्ट किया कि मैंने संथारा कर लिया है। चैत्र बदी अष्टमी को बारह दिन का संथारा पूर्ण कर आप स्वर्ग पधारों।
महासती माणककुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के कानोड ग्राम में वि० सं० १९१० में हुआ। आपकी प्रकृति सरल, सरस थी। सेवा की भावना अत्यधिक थी। ७५ वर्ष की उम्र में वि० सं० १९८५ के आसोज महीने में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ।
संयमकल्प वेलि-महासती धूलकुंवरजी
आपका जन्म उदयपुर राज्य के मादड़ा ग्राम में वि० सं० १९३५ माघ बदी अमावस्या को हुआ। आपके पिताश्री पन्नालालजी चौधरी और माता का नाम नाथीबाई था। माता-पिता ने दीर्घकाल के पश्चात् सन्तान होने से आपका नाम धूलकुँवर रखा। तेरह वर्ष की लघुवय में वास निवासी चिमनलाल जी ओरडिया के साथ आपका पाणिग्रहण हुआ। कुछ समय के पश्चात् ही पति का देहान्त होने पर, आपकी भावना महासती फूलकुंवर जी के उपदेश को सुनकर संयम ग्रहण करने की हुई। किन्तु पारिवारिक जनों के अत्याग्रह के कारण आप उस समय संयम न ले सकी और वि० सं० १९५६ में फाल्गुन बदी तेरस को वास ग्राम में महासती फूलकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। विनय, वैयावृत्य और सरलता आपके जीवन की मुख्य विशेषताएँ थीं। आपने अनेक शास्त्रों को भी कण्ठस्थ किया था। लगभग ३०० थोकड़े आपको कण्ठस्थ थे। आपके महासतो आनन्दकुंवर जो, महासती सौभाग्यकुंवरजी, महासती शम्भुकुंवरजी, बालब्रह्मचारिणी शीलकुंवरजी, महासती मोहनकुवरजी, महासती कंचनकुंवरजी, महासती सुमनवतीजी, महासती दयाकुंवरजी, आदि शिष्याएँ थीं।
___ श्रद्धेय सगुद्रुवर्य पुष्करमुनिजी महाराज को भी प्रथम आपके उपदेश से ही वैराग्य भावना जागृत हुई थी। आपका विहार क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़, मध्यप्रदेश, अजमेर, ब्यावर था। वि० सं० २००३ में आप गोगुन्दा ग्राम में स्थानापन्न विराजी और वि० २०१३ में कार्तिक शुक्ला ११ को २४ घन्टे के संथारे के पश्चात् आपका स्वर्गवास हुआ।
महासती लाभकुंवरजी-आपका जन्म वि० सं० १६३३ में उदयपुर राज्य के ढोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम मोतीलालजी ढालावत और माता का नाम तीजबाई था। आपका पाणिग्रहण सायरा के कावेडिया परिवार में हुआ था। लघुवय में ही पति का देहान्त हो जाने पर महासती फूलकुंवरजी के उपदेश से प्रभावित होकर वि० सं० १९५६ में सादडी मारवाड़ में दीक्षा ग्रहण की। आपका कण्ठ बहुत मधुर था । व्याख्यान-कला सुन्दर थी। आपकी दो शिष्याएँ हुई–महासती लहरकुंवरजी और दाखकंवरजी। आपका स्वर्गवास २००३ में श्रावण में यशवंतगढ़ में हआ।
महासती लहरकुंवरजी-आपका जन्म नान्देशमा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम सूरजमलजी सिंघवी और माता का नाम फूलकुंवर बाई था। आपका पाणिग्रहण ढोल निवासी गेगराजजी ढालावत के साथ हुआ। पति का देहान्त होने पर कुछ समय के पश्चात् एक पुत्री का भी देहावसान हो गया। एक पुत्री
जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएँ एवं सद्गुरुणी परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि । १४७
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