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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ)
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होती है। आहाड और बागोर की खुदाई में जो भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं वे क्रमशः तीन और चार हजार वर्ष पुराने हैं । मेवाड़ की धरती पर शिवियों, मालवों, मौर्यों और गुहिलों के आधिपत्य का उल्लेख प्राप्त होता है। गृहिलों के वंशज बापा ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में किया। बापा रावल की उपाधि से समलंकृत होकर शासन का संचालन करने लगे। प्रस्तुत घटना विक्रम संवत् ७६१ की है । विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में दिल्ली के शासक मुगलों ने मेवाड़ पर आक्रमण किया और उन्होंने चित्तौड़गढ़ को अपनी राजधानी बनाई । चौदहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से रत्नसिंह आदि शासक मारे गये और महाराणी पद्मिनी ने जौहर कर अपने सत्य-शील की रक्षा की। उसके पश्चात् कुम्भा और सांगा ने मेवाड़ की सीमाओं का विस्तार किया। सांगा के पश्चात् मेवाड़ के वीर और मुगलों के बीच संघर्ष होता रहा । विक्रम संवत १६३२ में इतिहासप्रसिद्ध हल्दी घाटी का युद्ध हआ। महाराणा प्रताप की मृत्यु के पश्चात् अमरसिंह ने विक्रम संवत् १६७२ में मुगलों के साथ संधि की। उसके पश्चात् मेवाड़-मुगल संघर्ष समाप्त हुआ।
__ मेवाड़ी माटी का संदर्भ मेवाड़ एक पहाड़ी प्रदेश है । पहाड़ी प्रदेश होने से वहाँ छोटी-बड़ी नदियाँ भी बहती रहती हैं। एक बार हिन्दुस्तान के वाइसराय ने उदयपुर के महाराणा फतहसिंह से पूछा-राणाजी, आपके मेवाड का नक्शा कहाँ है ? महाराणा ने कहा-अभी मँगवाता हूँ। उन्होंने अनुचर से कहकर उड़द (धान्य) का पापड़ सिकवा कर मंगवाया और वाइसराय को कहा-हमारे मेवाड़ का यह नक्शा है । वाइसराय एक क्षण तक देखते ही रह गये। उनके कुतूहल भरे मन को समाहित करते हुए राणा ने कहा-यह उड़द का सेंका हआ पापड़ जितना ऊबड़-खाबड़ है उतना ही विषमोन्नत मेवाड़ का भू-भाग है। इस पापड़ में फफोलों वाला भाग अधिक है और सम भाग कम है।
प्रकृति देवी ने इन पहाड़ियों और चट्टानों के रूप में धरती को सौन्दर्य ही नहीं दिया है अपित उसने जीवन का शाश्वत सत्य उजागर किया है । जीवन भी एक सदृश नहीं है, उसमें भी अनेक उतारचढ़ाव हैं । जो इन उतार-चढ़ावों में साक्षी भाव रखता है । वही ऊर्जस्वल व्यक्तित्व को उजागर कर सकता है।
उदयपुर महाराणा उदयसिंह की अमर कीर्ति को हृदय में छिपाये उदयपुर आज भी राजस्थान का महत्त्वपूर्ण जनपद है। जहाँ एक ओर गगनचुम्बी पर्वतमालाएँ जीवन को उन्नत-समुन्नत बनाने का पावन सन्देश दे रही हैं। तो दूसरी ओर कृत्रिम विराट् झीलें चारों ओर फैली हुई, मन को विशाल बनाने का आह्वान कर रही हैं। तीसरी ओर मीलों तक फैले हुए बगीचे अपनी प्राकृतिक सौन्दर्य सुषमा से जन-मन को आह्लादित करते हैं। तो चौथी ओर कल-कल छल-छल बहते हुए झरणे जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास करते हुए सतत गतिशील रहने का सन्देश देते हैं ।
उदयपुर की मिट्टी कुछ दूसरे ही प्रकार की है। इस मिट्टी में पराक्रम और पौरुष का विशेष प्रभाव रहा है। यहाँ के निवासी दृढ संकल्प के धनी और शक्ति-भक्ति में समान सामर्थ्यशील हए हैं। आज भी इस मिट्टी का चमत्कार स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसी भूमि को हमारी चरित्रनायिका महासती पुष्पवतीजी की जन्म भूमि होने का गौरव प्राप्त है।
___ओसवाल वंश : शौर्य-शील का राजहंस राजस्थान की पावन पुण्यभूमि ओसियां महानगरी से ओसवालों की उत्पत्ति हुई है।
एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना
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