________________
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
-समय रबर नहीं है जो खींचने से लम्बा हो का काम है। दूसरों के लिए स्वयं खतरे को मोल और खिचाव कम होने पर पूर्ववत् हो जाय। लेता है इसीलिए उसे आगे स्थान मिलता है। __ समय सरिता की सरस धारा है जो सतत आज के नेता आगे बैठना पसन्द करते हैं। वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रहती है किन्तु पीछ अभिनेता की तरह पार्ट तो अदा करते हैं। किन्तु नहीं मुड़ती।
वास्तविकता के अभाव में सफल नहीं हो पाते। समय कपूर की भाति है जो जरा-सी असाव- सच्चे नेता बनो, अभिनेता नहीं। धानी से नष्ट हो जाता है। यदि तुमने समय का चालक का असंयमी होना खतरनाक है । सदुपयोग किया तो समय तुम्हारे लिए वरदान रूप उसके हाथ स्टेरिंग पर, पैर ब्रक पर और आँखें सिद्ध होगा । यदि समय का दुरुपयोग किया तो वह मार्ग पर लगी रहनी चाहिये । आंखों के संकेत पर अभिशाप सिद्ध होगा। इसीलिए कहा है कि समय ही हाथ और पैर कार्य करते हैं ! यदि आंखों के बुद्धिमानों का धन है-Time is money । संकेत की हाथ-पैर एक क्षण भी उपेक्षा करें तो
तुम्हारे भव्य भवन के द्वार पर यदि कोई खतरा उसी समय उपस्थित हो जायेगा । जो व्यक्ति व्यक्ति गन्दगी फैलाता है । क्या उस व्यक्ति को तुम पथ प्रदर्शक के संकेत पर कार्य करता है, वही वहाँ पर बिठाये रखना पसन्द करोगे ? वहाँ से उसे बुद्धिमान है। धकेल दोगे ? बुरे संकल्प-विकल्प तुम्हारे मन-मन्दिरा चाहे कितना भो महान व्यक्ति क्यों न हो? को अपावन कर रहे हैं। क्या कभी तुमने उधर भी यदि वह भी असमय में आता है, उसका आगमन ध्यान दिया है ?
आदर की निगाह से नहीं देखा जाता । मेघ परोप7 जब गृह-स्वामी खर्राटे भरता है तब तस्कर
कर कारी है पर वह बिना ऋतु के बरसता है तो धन का अपहरण कर लेते हैं वैसे ही जब आत्मा
लोगों को असुहावना लगता है। प्रसुप्त होती है तब विकल्प-संकल्प रूपी तस्कर
[] सहयोग के कारण नन्हा व्यक्ति भी महान आत्म धन का अपहरण कर लेते हैं ।
बन जाता है। नन्हा सा नाला अन्य क्षुद्र नदियों के जीवन एक मंजिल है। मंजिल तक पहुँचने
। सहयोग को पाकर विराट नदी का रूप ले लेता
है। अनुकुल सहयोग गति में प्रगति प्रदान में अनेक घुमाव और उतार चढ़ाव आते हैं। जो
करता है। उतार-चढ़ाव और घुमाव को निहारकर भयभीत होकर रुक जाता है। वह लक्ष्य पर नहीं पहुँचा महान व्यक्ति अपने ध्येय की ओर निरंतर सकता। स्मरण रखो, अनन्त आकाश में उड़ान बढ़ना जानते हैं। वे दूसरे के सहयोग की प्रतीक्षा भरने वाले विमान को भी चढ़ाव, उतार, घुमाव नहीं करते पर उनकी कर्त्तव्य परायणता पर मुग्ध खाना ही पड़ता है फिर तू क्यों चिन्तित हो रहा है ? होकर गुणज्ञ व्यक्ति उनके पीछे चल पड़ते हैं। मानव का प्रत्येक कदम बाधाओं और वंचिकाओं से स्वतन्त्रता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के वंचित नहीं पर हरेक कदम पर बाधाएँ षड्यन्त्र कर पीछे भारत का प्रबुद्ध वर्ग चल पड़ा था। आ जुटी होंगी ऐसी कल्पना करना ही सबसे बड़ी जो वस्तु परिश्रम से प्राप्त होती है, उसमें बाधा है।
माधुर्य होता है । उसका मूल्यांकन होता है । किन्तु नेता वाहन चालक के सदृश होता है जो बिना श्रम से प्राप्त वस्तु का वास्तविक मूल्यांकन सदा आगे की सीट पर बैठता है और पीछे बैठने नहीं होता । यही कारण है प्रायः धनवानों की वालों का मार्गदर्शन करता है । आगे बैठना खतरे सन्तान आवारा होती है ।
चिन्तन के सूत्र : जीवन की गहन अनुभूति | २२६