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साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
चौदह-सौ चौमालीस (१४४४) गोत्र हैं। उसमें एक गोत बरड़िया भी है। यह नाम किस कारण से पड़ा, यह अनुसन्धान का विषय है । यदि अनुसन्धान किया जाय तो अनेक रोचक व ऐतिहासिक प्रसंग पाठकों के सामने आ सकते हैं। यह भी सत्य है कि काल की परतों के नीचे अनेक ऐतिहासिक तथ्य दब चुके हैं। भारत के विविध प्रान्तों में बरडिया परिवार के लोग बसे हए हैं। इस परिवार के लोग किस संवत में उदयपुर पहुँचे ? यह ऐतिहासिक दृष्टि से अन्वेषणीय है । अनुश्रुति यह बताती है कि करेड़ा में जो भगवान पार्श्वनाथ का ऐतिहासिक आलय है । वह बरड़िया परिवार के द्वारा ही निर्मित है ।
परिवार-परिचय
श्रीमान् कन्हैयालालजी बरड़िया उदयपुर के एक धर्मनिष्ठ सुश्रावक थे। उनके जीवन के कणकण में धर्म की निर्मल भावनाएँ सदा अँगड़ाइयाँ लेती रहती थीं। यह कहना अतिरंजन नहीं होगा कि कन्हैयालालजी अपने में एक संस्था थे। संयुक्त परिवार के मुखिया होने के कारण ही नहीं किन्त वे नगर के एक प्रतिष्ठित लोकप्रिय व्यक्ति थे। वे स्वभाव से निडर थे, उदार थे तथा धर्मप्रिय भी थे। वे प्रतिदिन पाँच सामायिकें करते थे। महीने में पाँच आयम्बिल करते थे। जब तक उदयपुर में सन्त भगवन्त विराजते तब तक वे मुनिराजों को आहारदान दिये बिना भोजन ग्रहण नहीं करते थे। उन्हें गुप्त दान देना बहुत पसन्द था । वे दीन-अनाथों को वस्त्रदान और सुस्वादु भोजन खिलाने के शौकीन थे । वे प्रति दिन सामायिक में भक्तामर स्तोत्र उवसग्गहर स्तोत्र आदि का पाठ किया करते थे और नियमित रूप से शास्त्र-श्रवण करते थे । आपके फर्म का नाम था, जालमचन्द कन्हैयालाल । उदयपुर में दो दुकानें थीं। एक में थोक माल और दूसरी में रिटेल माल का विक्रय होता था इसके अतिरिक्त बड़ी सादड़ी, कानोड़
और भींडर में मो आपकी दुकानें थीं। आपके पाँच पत्र थे। जीवनसिंह, रतनलाल, परमेश्वरलाल. मनोहर लाल और मदनलाल । यह पाँचों भाइयों का गुट पाण्डवों की स्मृति को ताजा करता था। तथा चार पुत्रियाँ थीं।
पुण्यपुरुष : श्री जीवनसिंहजी
सबसे बड़े पुत्र थे जीवनसिंहजी जो एक पुण्यपुरुष थे। प्रारम्भिक मेट्रिक अध्ययन के पश्चात् उन्होंने व्यवसाय के क्षेत्र में प्रवेश किया । व्यापार कला में निष्णात होने के कारण व्यापार दिन-दूना और रातचौगुना चमकने लगा। नम्रता, सरलता, स्नेह और सद्भावना के कारण वे अत्यधिक जनप्रिय हो गए । १८ वर्ष की लघुवय में ही जीवनसिंहजी का पाणिग्रहण अर्जुनलालजी भंसाली की सुपुत्री प्रेमकुंवर के साथ सम्पन्न हुआ। उस समय अजुनलालजी उदयपुर के प्रसिद्ध वकीलों में से थे। बड़े ताकिक थे। प्रेमकंवर भद्र प्रकृति की एक सुशील महिला थी । जीवनसिंहजी का दाम्पत्य जीवन आनन्दपूर्वक बीतने लगा।
जब वृक्ष पर नए किसलय आने लगते हैं, तो सहज ही परिज्ञात होता है कि बसन्त ऋतु का आगमन हो रहा है । जब उत्तर दिशा में काले-कजराले बादल उमड़-घुमड़ कर आते हैं तो वे बादल वर्षा का संकेत करते हैं । सायंकाल जब पश्चिम दिशा में लालिमा अपनी सुनहरी किरणों से चमकतो हैं तो रात्रि के आगमन का सहज आभास हो जाता है और जब प्रातःकाल उषासुन्दरी पूर्व दिशा में मुस्कराती है तो सूर्योदय होने का परिज्ञान हो जाता है। उसी प्रकार महान् व्यक्ति के आगमन का भी पूर्व संकेत मिल जाता है। महासती पुष्पवतीजी के जन्म धारण से पहले ही उनकी माँ को शुभ संकेत मिल गया था।
एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १६६
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