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३... कृतज्ञता विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती, कृपालु माँ पद्मावती, पुरूषार्थ बढ़ाने वाली माँ चक्रेश्वरी के प्रति नमन् । गणाधिपति गुरूदेव आचार्य श्री तुलसी की कृपावृष्टि की अनुभूति के लिए मैं अशब्द हो जाती हूँ, आँखें नम जाती हैं। साहित्य के मर्मज्ञ, विद्वर्य समाज में ख्यात् धर्मचक्रवर्ती, अणुव्रत, अनुशास्ता अहिंसा यात्रा के प्रवर्तक, ज्ञान यज्ञ के पुरोधा, आचार्य महाप्रज्ञ का प्रोत्साहन, वात्सल्य, मार्गदर्शन व अहैतुकी कृपा मुझे न मिला होता तो यह ग्रंथ कभी भी इस रूप में न आ पाता। गुरू के प्रति चरमभक्ति उनकी काव्य दृष्टि का समझने के लिए मुझे हमेशा प्रेरित करती रही हैं। वस्तुतः आचार्य वर द्वय की प्रेरणा का परिणाम है-यह शोध प्रबंध। अस्तु यह शोध प्रबंध मय गणाधिपति गुरूदेव आचार्य श्री तुलसी के श्री चरणों में समर्पित करती हूँ।
युवाचार्य महाश्रमण जी, साध्वीप्रमुखा महाश्रमणी जी की कृपा दृष्टि में मै आकंठ डुबती रही हूँ। मुनि महेन्द्र कुमार जी, मुनि किशन लाल जी, मुनि सुख लाल स्वामी जी, मुनि सुमेर मुनि जी, मुनि जयचंद लाल जी किन-किन का नाम स्मरण करूँ, सभी साधुगण वंदनीय हैं, बड़ा योगदान रहा। मुनि धनजंय कुमार जी ने कहा था चारों तरफ के कार्य में विभक्त शक्ति को एक तरफ केन्द्रित कर यह रिसर्च कार्य पूर्ण कर लो, आप भी प्रेरक है। साध्वी राजीमती जी, साध्वी संघमित्रा जी, साध्वी जयश्री, साध्वी विद्यावती जी, साध्वी कमल प्रभाजी, साध्वी रतन श्री जी, साध्वी जिन प्रभा जी, आदि साध्वीगण के अवितथ-कृपा का प्रसाद-पाथेय मिलता रहा हैं, वंदन!
साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत डॉ. हरिशंकर पाण्डेय अध्यक्ष, प्राकृत एवं जैनागम विभाग, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणासी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना महज औपचारिकता होगी। मुम्बई निवासी प्रो. डॉ. ललिता बी. जोगड़, भीकमचंद जी कोठारी टाडगढ़, (नई मुंबई), डॉ. भागचंद जैन 'भास्कर' व डॉ. पुष्पलता जैन नागपुर, डॉ. आदित्य प्रसाद तिवारी सभी कार्य विकास हेतु प्रेरित कर उत्साहवर्धक बनते रहें। प्राचार्य डॉ. कृष्ण दत्त तिवारी, सतना, सी.एम.ए. विद्यालय, मध्यप्रदेश की सहजता, सरलता हमेशा लेखन में अपूर्णता से पूर्णता का स्पर्श कराती रही।
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