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...... . 'पथराई आँखों' एवं 'सरिता' प्रतीक उस सयम बहुत सार्थक प्रतीत होता है, जब भरत का आगमन अपने राज्य अयोध्या में होता है। उस समय जनता में एक प्रसन्नता की लहर सी दौड़ जाती है।
'पथराई आँखों में नवजीवन लहरी' अन्तस् की सरिता हुई प्रवाहित गहरी।
ऋ.पृ.-186.
यहाँ 'उदास' तथा 'विषाद' भाव के लिए 'पथराई आँखें' तथा 'हर्ष' एवं 'आह्लाद' के प्रतीक के रूप में 'सरिता' का प्रयोग किया गया है।
'सरोवर', 'शतदल', 'तमस' प्रतीक का प्रयोग परंपरा से होते आया है, जिसका प्रतीकार्थ क्रमशः मन या हृदय, कोमलता तथा अज्ञान या निराशा है। कवि ने उक्त उपमानों का प्रस्तुतिकरण परम्परागत रूप में किया है :
मन सरवर में जब शतदल खिल जाता है।
तब सघन तमस का आसन हिल जाता है।
ऋ.पृ.-186.
तृष्णा व्यक्ति को भटकाती है। वैभव की तृष्णा तो उसकी संपूर्ण चेतना को झकझोर देती है। यहाँ तृष्णा की अभिव्यक्ति ऋषभ के पुत्रों के स्वप्न वृत्त से की गयी है :
तालाबों का, सरिताओं का, आखिर अंभोनिधि का नीर। पिया चित्र! फिर भी है प्यासा, तृष्णा का लंबा है चीर। ऋ.पृ.-199.
यहाँ 'तालाब', 'सरिता', 'अंभोनिधि' प्रतीक का प्रयोग तृष्णा के लिए तथा 'चीर' का प्रयोग 'विस्तृत क्षेत्र' के लिए किया गया है। जिस प्रकार उक्त जलाशय क्रम से अपने विस्तृत रूप को व्यक्त करते हैं, उसी प्रकार 'तृष्णा' भी बढ़ते-बढ़ते असीम हो जाती है। यहां तृष्णा के प्रारंभ और चरमोत्कर्ष की अभिव्यक्ति प्रभावशाली है।
'समुद्र' और 'कूप' प्रतीक का प्रयोग प्रारंभ से ही विविध रूपों में होता आया है। पारम्परिक रूप से समुद्र-विशालता या गंभीरता के रूप में तथा 'कूप' सीमित क्षेत्र के रूप में प्रयुक्त होता रहा है। दूत द्वारा 'भरत' एवं बाहुबली की तुलना उनकी उपाधि के साथ उनकी सीमा का रेखांकन करती है :
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