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(2)
भरत :
भरत ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र हैं तथा महाकाव्य में सहनायक के रूप में प्रतिष्ठित हैं । ये कोमल गात्र के स्वामी तथा अयोध्या के राजा है । शौर्य, साहस तथा दिव्य आयुध रत्नों से मण्डित चक्रवर्ती नरेशं बनने की इनकी मनोकामना ही विश्वयुद्ध का कारण है । युद्ध और अशांति एक-दूसरे के पूरक हैं। विश्व के नरेशों को पराजित करने के पश्चात् भाईयों से भरत का युद्ध जहाँ उनकी भर्त्सना का कारण है, वहीं युद्ध से विरत होने का भाव भी है
ऋषभ - पुत्रों में कलह हो, मान्य मुझको है नहीं । चक्र रूठे रूठ जाए, बन्धु तो वह है नहीं ।
पृ. 224. भरत राजनीति, कूटनीति, व्यवहार नीति में निष्णात है । उनकी ख्याति एक प्रजापालक नरेश के रूप में है किंतु युद्ध के क्षणों में उनके द्वारा हिंसा का प्रसार, रक्तपात, विश्व विजय के उन्माद में उनके आक्रामक स्वरूप को व्यक्त करता है । भरत के चरित्र का सबसे दुर्बल पक्ष वहाँ देखने को मिलता है जब बाहुबली से युद्ध में पराजित होने के पश्चात् उन पर वे चक्ररत्न से प्रहार करते हैं । अन्ततोगत्वा पिता ऋषभ के प्रभाव वे संयम मार्ग ग्रहण कर राजपाट से विरत हो साधना के मार्ग पर अग्रसर होते हैं इस प्रकार महाकाव्य में ऋषभ के पश्चात् भरत का व्यक्तित्व उभरा है, इनमें पूर्णरूपेण नायकत्व के दर्शन होते हैं ।
(3)
बाहुबली
बाहुबली ऋषभ के द्वितीय पुत्र एवं 'बहली' देश के नरेश के रूप में प्रतिष्ठित हैं । ये शूरवीर, कर्मवीर, प्रजापालक, राष्ट्रप्रेमी, स्वाभिमानी तथा विराट व्यक्तित्व के स्वामी हैं। दूरदर्शिता इनमें सहज रूप में परिलक्षित होती है । भरत से युद्ध में उनका शौर्य उस समय देखते ही बनता है जब उनके लोहदण्ड के प्रहार से भरत आकंठ जमीन में धँस जाते हैं :--
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मग्न भूमि में भरत कंठ तक
संभ्रम विभ्रम की आवाज
लुप्त हो रहा है भरतेश्वर
बहलीश्वर पहनेगा ताज
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ऋ. पृ. 283.