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प्रथमो विलासः
गीतश्रान्ति जैसे (कुमारसम्भव ३.३८ में)
किन्नर लोग गाते-गाते बीच ही में रुककर पसीने के कारण कुछ-कुछ बिगड़ी हुई पत्र - रचना से युक्त तथा मद्यपान के कारण लाल नेत्रों से और भी सुशोभित होने वाली अपनी प्रियतमा (किन्नरियों) का मुख चूमने लगे || 205 |
नृत्तश्रान्त्या यथा ( रघुवंशे १९/१५) -
चारुनृत्तविगमे च तन्मुखं स्वेदभिन्नतिलकं परिश्रमात् । प्रेमदत्तवदनानिलं पिबन्नत्यजीवदमरालकेश्वरौ 11206 11
नृत्य की थकान से स्वेद जैसे (रघुवंश १९.१५ में ) -
जब नृत्य समाप्त हो जाता था और नाचने के परिश्रम से नर्तकियों के मुख पर पसीने की बूँदे छा जाती थीं तब राजा अग्निवर्ण प्रेमपूर्वक मुख से फूँक लगा कर उनके मुख को चूमने लगता था, उस समय वह अपने को इन्द्र एवं कुबेर से भी बढ़ कर सुखी तथा भाग्यवान् समझता
था। 120611
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क्रोधाद् यथा (शिशुपालवधे २.१८) - दधत्सन्ध्यारुणव्योमस्फुरत्तारानुकारिणीः ।
द्विषद्द्द्वेषोपरक्ताङ्गसङ्गिनीः स्वेदविप्रुषः ।।207 ।।
क्रोध से स्वेद जैसे (शिशुपालवध २.१८ में ) -
सायंकालीन लाल आकाश में नक्षत्रों का अनुकरण करने वाली, शत्रु के विषय में उत्पन्न क्रोध से लाल वर्ण वाले, शरीर से उत्पन्न पसीने की बूंदों को धारण करते हुए बलराम जी ald 1120711
भयाद् यथा ममैव (रसार्णवसुधाकरे १.१३) - कृतान्तजिह्वाकुटिलां कृपाणीं
दृष्ट्वा यदीयां त्रसतामरीणाम् ।
स्वेदोदयश्चेतसि सञ्चितानां
मानोष्मणामातनुते प्रशान्तिम् ।।208 ।।
भय से स्वेद जैसे शिङ्गभूपाल का ही (रसार्णवसुधाकर १.१३) -
यमराज की जिह्वा के समान कुटिल भुजाली को देखकर भयभीत शत्रुओं के चित्त में
सञ्चित अत एव उत्पन्न पसीना मान रूपी ताप को शान्त करता था । 1 208।।
अथ रोमाञ्चः
रोमाञ्चो विस्मयोत्साहहर्षाद्यैस्तत्र विक्रिया ।। ३०५।। रोमोद्गमोल्लासधनगात्रसंस्पर्शनादयः