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रसार्णवसुधाकरः
रूपकों के भेदक तत्त्व- रस, इतिवृत्त और नायक ये इन रूपकों में परस्पर भेद करने वाले होते हैं। अर्थात् रस, कथावस्तु और नायक के भेद से रूपकों में भिन्नताएँ होती हैं।॥३॥
इतिवृत्त का निरूपण- नायकों (नायक और नायिका) को लक्षित किया जा चुका है। अब इतिवृत्त का निरूपण किया जा रहा है। इतिवृत्त और कथावस्तु- ये दोनों शब्द पर्यावाची है।।४॥
कथावस्तु का विभाजन
प्रबन्ध का शरीर रूपी कथावस्तु तीन प्रकार की होती है- (१) प्रख्यात, (२) कल्पित और (३) संङ्कीर्ण। राम की कथा इत्यादि प्रख्यात इतिवृत्त है।।५।।
कविबुद्धिकृतं कल्प्यं मालतीमाधवादिकम् ।
सङ्कीर्णमुभयायत्तं . लवराघवचेष्टितम् ।।६।।
कविबुद्धि से प्रसृत मालतीमाधव इत्यादि इतिवृत्त कल्पित है। दोनों (प्रख्यात तथा कल्पित) से युक्त लवराघवचेष्टित सङ्कीर्ण इतिवृत्त वाला है॥६॥
लक्ष्ये स्थितं बहुधा दिव्यमादिभेदतः ।।
लक्ष्य (नाट्य) में स्थित वस्तु दिव्य और मर्त्य इत्यादि भेद से अनेक प्रकार की होती है।।७पू.।।
विमर्शः- (१) प्रस्तुत कारिका में दिव्य मर्त्य आदि कहा है। यहाँ यह प्रश्न होना स्वाभाविक है कि आदि पद से किसका ग्रहण होता है? साहित्य-दर्पण (६.९) के अनुसार आदिपद से दिव्यादिव्य लेना चाहिए।
__(२) कुछ इतिवृत्त शुद्ध दिव्य होते हैं जैसे कृष्ण की कथा। कुछ शुद्ध मर्त्य (मनुष्य से सम्बन्धित) होते हैं। जैसे मालतीमाधव, मृच्छकटिक आदि कथानक। कुछ दिव्य और मर्त्य दोनों होते हैं, जैसे राम की कथा क्योंकि राम दिव्य होकर भी को अपने को मानव समझते हैं।
तच्चेतिवृत्तं विद्वद्भिः पञ्चधा परिकीर्तितम् ।।७।।
बीजं बिन्दुः पताका च प्रकरी कार्यमित्यपि ।
फल की दृष्टि से कथावस्तु का विभाजन- यह इतिवृत्त आचार्यों द्वारा पाँच प्रकार का कहा गया है। (१) बीज, (२) बिन्दु, (३) पताका, (४) प्रकरी और (५) कार्य।।७उ.-८पू.॥
अथ बीजम्
यत् स्वल्पमुपक्षिप्तं बहुधा विस्तृतिं गतम् ।।८।। कार्यस्य कारणं प्राज्ञैस्तद् बीजमिति कथ्यते ।