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द्वितीयो विलासः
[ २७७]
पड़े।।२३१उ.-२३२पू.॥
यथा
सविधेऽपि मय्यपश्यति शिशुजनचेष्टाविलोकनव्याजात् ।
हसितं स्मरामि तस्याः सस्वनमाकुञ्चितापाङ्गम् ।।478 ।। जैसे
समीप से मेरे द्वारा देखे जाने पर उस (नायिका की) शिशुओं की चेष्टाओं को देखने के बहाने से कुछ मधुर ध्वनि वाले तथा सिकुड़े हुए आँखों के कोरों वाले हसित को मैं याद कर रहा हूँ।।478।।
फुल्लनासापुटं यत् स्यान्निकुञ्चितशिरोंसकम् ।। २३२।। जिह्मावलोकिनयनं तच्चावहसितं मतम् ।
४. अवहसित- जिसमें नासापुट फूल जाय, शिर और कन्धे सिकुड़ जाय आँखों से तिरछे देखा जाय-वह अवहसित हास होता है।।२३२उ.-२३३पू.॥
यथा
खर्वाटधम्मिल्लभरं करेण संस्पृष्टमात्रं पतितं विलोक्य । निकुञ्चितांसं कुटिलेक्षणान्तं
फुल्लापनासं हसितं सखीभिः ।।479।। जैसे,
हाथ से छूते (स्पर्श करते) ही गिर जाने वाले गजें के बालों को देख कर (नायिका) कन्धों को सिकोड़ कर, आँखों की कोरों को टेढ़ा करके और नाक के अगले भाग को फूला कर सखियों के साथ हँसने लगी।।479 ।।
कम्पिताङ्गं साश्रनेत्रं तच्चापहसितं भवेत् ।।२३३।।
५. अपहसित- वह अवहसित हास अपहसित कहलाता है जब उसमें अङ्ग काँपने लगे और नेत्रों में आँसू बहने लगे।।२३३उ.।।
यथा
समं पुत्रप्रेम्णा करटयुगलं चुम्बितमनो गजास्ये कृष्टास्ये निबिडमिलदन्योन्यवदनम् । आपायापायाद् वः प्रमथमिथुनं वीक्ष्य तदिदं हसन् क्रीडानृत्तश्लथचलिततुन्दः स च शिशुः ।।480।।