Book Title: Parambika Stotravali
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Page 145
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 141 ) क अनिर्वचनीय अखंडित ब्रह्मानन्द कां देतुहै / अरु लोकिक चन्द्रउदय होत है। तब बाहर को अन्धकार दूर होतुहै अरु तावकमुखचन्द्रोदयांतर्वति द्विधा रूपतमकां दूर करते हैं अरु वो चन्द्र को दूरीकृत तम फिरके विश्व में छाय जातु है। अरु भवदीय मुखाखण्डकलानिधान है। ललिते एकवेर भक्तहृदय गगनोदित होकर माया जन्यतम को इस रीति दूर करतु है कि फिर के प्रादुर्भाव न होय नित्य प्रकाश नित्यानन्द ही रहे सो तव श्रीमद्वदनचन्द्रभुज लताचरन सरोजनसमलौकिक कलानिधिकल्पलताकमल नहीं है / तब चरनादिकन को कमलादिकन ते अधिक ऐश्वर्य वरनन कस्यो तिनहते अत्यधिक ऐश्वर्य हैं सो हम कहांतक कहैं अरु हमारी कहां सामर्थ्य है यथावत वर्णन सहस्रमुख सेषादिकन ते नहीं होतु है साक्षात् तो शब्द ब्रह्मवेदपुरुषभी नेति नेति कहै है / वर्णयन् विमुह्यति कुं ठीभावं प्राप्नोतिच / अरु जोकुछ किंचितमात्र जाने हे कहै है तो / तव प्रसाद ही जान है अरु कहे है अन्यथातव स्वरूप महिमा शिवादिकन केहुअलक्ष्य है // 6 // शाक्तिक शिरोमणी वार्तामयी स्तुति अथवा इन वार्तामयिस्तुतिका नाम // ललिता मुखचन्द्रिका ठीक है // अरु जैसा श्रीमद्भगवती का सर्वोत्कृष्टपना है अरु अलक्ष्य महिमा है इसी प्रकार स्तुति का भी माहात्म्य अरु फल प्राप्ति सकलशिरो मणि रसाभिज्ञलोक समजेंगे परंतु मदुपदेशात् कृतविश्वासा तदितरा अपिइदंसत्पमितिज्ञातुंयोज्ञाभवंतुं। हमारे पूर्वोक्त For Private and Personal Use Only

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