Book Title: Parambika Stotravali
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Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 144 ) यलगायलयोजगदंबभयौ मनवांछितकांजहमारो // 6 // रूपनिहारत मो अंखियां वसकर्मकबैनटरोमतटारी / निर्मल चित्रचरित्रकथा सलितारस जुग्मश्रुतीपनिहारी // कंचन श्रीत्रिपुरे शरणागत वत्सलऐही है आसतिहारी। मोहनीमू रत तेरिवसौ मनपंकज होऊ कमतन्यारी // 7 // जाके अग्ररहत कपालीकरजोरेसदा, कोटिब्रह्मांड होतजाके भोहभंगरौं / निजाभिन्नब्रह्मरसपीयतनिरंतर ही शिवशिव रूप होतजा के ही सुसंगतै // कंचनविरंचविष्णुप्रआदि सब देवकहा थिरचरविश्वसबभयो जाकेअंगतें / कामजगजीतभयौ जाकीअनुकंपाकरि ताहिजगदंब कोमेवंदतउमगतें // 8 // पंचसरसौउपुनसुमनकेसो है सदा ईषकोवाकुसुमको चाप करराजे है। ज्याहै भ्रमरालीमयी सुभट वसंतजाके सीतल सुगंध मंदेपोनरथसाजे है // सेना अबलान की बनाय जगजीतलयो नायक अनंगहें कैत्रिभुवन गाजे है। तेरेपदपं कज प्रणाम को प्रभाव अंबत्रिपुरेजगतसीस छत्रहैं कैछा जै है // 6 // कोटि कोटिसोमसौसरूपसो है. कोटि कोटि चंचलाछंटासीतन सोभा उजियारी है / एक जगतात. अरुएक जगमात एक वस्तूद्वै. भांतिहुँ के महिमा विस्तारी है // शब्द अरुअर्थचंद्रिका प्रकाश सूर उश्मता अग्नि ज्यां ही मिलित सुषकारी है / परस्पर ध्याता भोगमोक्षहू के दाता ऐसे शिव अरु शिवाजू को वंदना हमारी है // 10 // एक कोऊ रंभासुर नाम भयो तातै रुद्र पर कीनो उग्र तपता For Private and Personal Use Only

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