Book Title: Parambika Stotravali
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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 140 ) हौ कि वह चन्द्र दिनको छविमन्द होतुहै अरु प्रतियो सवह घट बढ होतुहै / यह चन्द्र दिनको छवि सुन्दर भक्त चकोर सुखदायी रहतु है / अरु यो सदावढ्यौ ही रहतु है / अरु जो जाड्यप्रद है अरु यह चैतन्यकारक है अरु वो चन्द्रसकलंक है / योनिस्कलंक आपतो है इहै परंतु यह सुधानिधि कोध्यान करनहारौ / अज्ञानकलंक रहित होते है / अरु वहांद्विजराज है / यह चतुर्दश भुवनाधीश्वर है अरु उनके आश पास तारे रहहुत है / अरु इनके आस पास कामेश्वर्यादि शक्तियां के कस्तूरी बिन्दुकालिमा मृगाङ्कित मुखचन्द्रशत हाजरी में रहतु है / अरु चंद को उदयास्त है / अरु यो सदा उदयही रहतु है / वहचन्द्रसा यन्त हैं वो सातङ्क है योनिरातङ्क है // सोतो हेई के परंतु इसके ध्यानकारों का यह निरातंक करतु है / वो चन्द्र दोषा कर है / यो गुणाकर है प्रकाशकारी है अरु वह गुरु स्त्रीगमनादिक अधर्मकारी है स्वभक्त समदर्शी नहीं है अरु तव मुखेन्दुका आविर्भाव भी धर्मार्थ है सर्व भक्त स्वे. च्छानुकूल सुखवरदायी है / वह चन्द्रसकामी वांछितहै यह चन्द्रसकामी अकामी दोनांको वांछित है वह संयोगी वि. योगी को सुखदुखद है / यह चन्द्र दोनों का सुखकारी है वह भोगद है यहं भोग मोक्षप्रद प्रसिद्ध है / वह कामादि विषयन में प्रेरक है / अरु त्वन्मुखेंदु तव दासनका विषय वासना छुडायसर्वं खल्विदंब्रह्मेति श्रुतिशिरोदित अनुभव सिद्धेन पुनः अहंब्रह्मास्मीति रूप सर्बानंदांतमूर्ति अलोकि For Private and Personal Use Only

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