Book Title: Parambika Stotravali
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Page 143
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 136 ) श्री शाक्तिकारोमणि वार्तामयी स्तुतिर्लिख्यते // हे अद्वैतानंददायिनि अद्वैतरूपिणि स्वेच्छाद्वैतललितचरित्रे शिवे तवपदाब्ज साधारण कलन अधिक हे जोवे पद्म है तेतौ श्रीकों स्वकोषविषराखै है। अरु येपदपंकज असंख्यभक्तनका अप्रमेयसदेवधनदेव है अरु वेकमल हंस हंसनीयां की पादाहति सदैव सहते है अस्येतुमारे पदपंकज हंसन के सदानमनीय है / अरु उनकंजांकाप्रफुलित होणा परतंत्र है / और ये चरनपंकेरुह स्वतंत्र शोभास्पद है / इत्यादिकप्रकार से उनवनजनतें चरण जलजात तुमारे अधिकहै / उन अरविंद का ब्रह्मानीचे को करता है। और तुमारे चरणां भोरुहकां ब्रह्मास्वमस्तकविषै सदाधारनकरे है इसीतरै आप की भुजलता कल्पलता तें अधिक है, क्यों कि कल्पलता निक. टवर्ती जन को प्रार्थित फलदेवेहै / अरुतवभुजलता निकट स्थ दूरस्थ स्वजनाकों अयांचाते ही फल देते हैं / अरुक ल्पलता वांछित फल देव है / अरु भवदीया भुजवल्लरी वांछातै अधिक फल दयो है / सुरथादि सुदर्शनादि नृपन अनेकनकां / और अन्यजाति भक्तन असंख्यन कां वांछा धिक फल दयो है / अरु देवै है / अरु देवेंगे // सोमार्कंडेया दि पुरानन विषै प्रसिद्ध है / अरु लोकविख्यात है फिर अनुभव सिद्ध है याही प्रकार / तब मुखेंदुको ऐश्वर्य लोकिक चन्द्र अधिक हैं किह प्रकार अधिक है सोइ कहतु For Private and Personal Use Only

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