Book Title: Parambika Stotravali
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Page 146
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 142 ) उपदेश से कीया है। विश्वास जिनांने एसे जो शिरोमणी रसाभिज्ञ लोक जिनसे जो प्रथकलोक है वो भी सत्य है ऐसा जानने के योग्य होहुगे // // दोहा // अधम उर्द्धगति दा अलख, अविगत अमल अनूप / सबघटव्यापक सुंदरी, जय जय ज्योतिस रूप // 1 // हेलहि महिषादिक हने, असुर घने अघरूप / सो मोमन पंकज वसो, सुभकृत ज्योतिस रूप // 2 // ईष सरासन करलसित, मन्दहसित मुख जास। करि अनुकम्पा मो करिहु, ललिता हृदय निवास // 3 // वरन अंब दरसन चषन, तन मंजन तिह तोय / करन सदा पूजन कर्म सरन चहासुखसोय // 4 // दूरकरहु दुरवासना, तो उपासना मात / सुद्ध धर्म अनुसासना, तुल्य जासनातात // 5 // ॥सोरठा // पापी हीन प्रबोध, व्रतसंयम नहि नियम विध / सकल सुरन मधसौध, त्रिपुर सुन्दरी सरन तव // 1 // // कवित्त इकतीसा // श्रीमद्वदनचंद्रस्तुतिरा सर्वगुणाकरमुषचंद्र अंबरावरो है, वहे चंददोशाकरनामजगपायो है, अंकितकलंकवहेयाहेनिकलं कसदावो है, दिनदीनयह सुंदरता छायो है। घट वढ जात वहै रहतबढ्यौ ही यहै, क्षयीवहअक्षययौ सब मन For Private and Personal Use Only

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