Book Title: Meerabai
Author(s): Shreekrushna Lal
Publisher: Hindi Sahitya Sammelan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar पहला अध्याय प्रवेश . विक्रम की पंद्रहवीं, सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में उत्तर भारत में भक्तिधर्म की प्रधानता भी । किननी ही दृष्टियों से इस भक्तियुग का विशेष महत्व है और इस महत्वपूर्ण युग में भो मी बाई का विशिष्ट स्थान है। यह नाजपूतों को वीरता का युग था......महाराणा सांगा और प्रता,वीरश्रेष्ठ जयमल और पुत्ता,राव जोधा जी और मालदेव जैसे मालधनी वारों की कीति से सारा राजपूताना गूज रहा था- और मारा इस बुग के रणबांकुरे राठौर राव जोधा जी की प्रपौत्री, वीर जयमल की बहिन तथा सीसौदियों के सूर्य महागरणा सांगा की ज्येष्ठ पुत्रवधू थी; यह कबीर, दाडू, नानक, रैदास तथा नरसी मेहता जैसे ईश्वरपरायण भक्तों का युग था और मी एक महान भक्त थी; यह एक अवतारी युग था जब गोसाई तुलसीदास आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के, गौरांग महाप्रभु श्री चैतन्यदेव भगवान कृष्ण के, महात्मा हरिदास श्री ललिता सखी के और गोसाई हित हरिवंश भगवान मुरलीधर को मुरली के अवतार समझे जाते थे और मोरों द्वापर युग की वज-गोपी को अवतार प्रसिद्ध थी; यह हरिदास, तान पेन, वैजू बावरे तथा सूरदास जैसे गायकों का युग था और मीराबाई एक अलौकिक गायिका थीं; यह सूरदास, तुलसीदास, विद्यापति तथा कबीर जैसे महाकवियों का युग था और मीरौं एक जन्मजात कवि थीं। मारांश यह कि मासूबाई इस युग का गौरव बढ़ाने वाला एक महान् श्रात्मा थीं। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 188