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* श्री लबेचू समाजका इतिहास * १६ वह आचार्यपट्टावली श्री राजेन्द्रभूषण तथा श्रीपाल वर्णीकी लिखी हुई है। पाण्डव पुराणकी प्रशस्तिमें श्री शुभचन्द्राचार्यकी सहायता देनेवाले लिखा है। वह संवत् १६०८ में लिखा है और इस पट्टावलीमें भी श्री शुभचन्द्राचार्यको १५७१ में लिखा है। अँगाड़ी फिर संवत्का उल्लेख नहीं ये वे ही श्रीपालजी हो सक्त हैं। इससे स्पष्ट विदित होता है कि ये दोनों यन्त्र श्री सूरीपुर या गवालियरके पट्टाधीश आचार्यों के द्वारा प्रतिष्ठित हैं। श्री धर्मकीर्तिके शिष्य श्री शीलभूषण और उनके शिष्य जगद्भुषणजी गवालियरके पट्टाधीश हुये हैं। गवालियरके पट्टाधीश ही सूरीपुरके पट्टाधीश हैं। और कोई समय गवालियरके भट्टारक यतियोंका सूरीपुरसे ही निकास भया होगा क्योंकि सुनते हैं कि गोपाचल ( गवालियर ) पर तोमरोंका राज्य रहा तोमर क्षत्रिय हरिवंश यादव वंशमेंसे ही है। जरासिंधकी लड़ाईमें कृष्णकी तरफ सेनामें तोमर भी थे हरिवंश पुराणमें लिखा है। ___अब तक सूरीपुरके यति भट्टारक रामपालजी गवालियर के शिष्योंमें हैं जो इस समय वर्तमान हैं। यह बात हम