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११२ श्री लँबेचू समाजका इतिहास * णिय घरे पत्तउ वण-गन्ध-हत्थि
मयमत्तु फुरिय मुहरुह गभत्थि। वसि हुयउ स-सर दसदिसि भरंतु
भणु कोण पडिच्छइ तहो तुरंतु। सुपसण्ण-राउ घरहं तवेइ
भणु कवण दुवार कबाड देह अबमिय वयणलिणा चातुरंग
धण-कण-कंचण-संपुण्ण चंग। घर समुह एंत पेच्छवि सवारु
___ भणु कवणु बप्प झंपइ दुवारु । चिंतामणि-हाडय-निवड जडिउ
पज्जहइ कवणु सई हत्थ-चडिउ। शुद्ध मन से, धर्मरूपी माणिक्य प्राप्त हो। धर्म से रहित नरजन्म निष्फल है।" इस प्रकार कवि अपने चित्त में चिन्ताकुल हुए। ___ "क्या करूँ, यहाँ कौनसा उपाय प्रकट करूं जिससे पुण्यप्रभाव-राग का लाभ हो।" ऐसा सुखरूपी वल्ली की जड़-समान मन में ध्यान ध्याते हुए रात्रि के पश्चिम भाग में निर्द्वन्द्व होकर अपनी शय्या पर जब वे गहरी नींद में सो गये, तब स्वप्न में सद्धर्म में प्रसक्त रहनेवाली जिन-शासन यक्षिणी वहीं आई और