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* श्री लँबेचू समाजका इतिहास * १३६ पीछे पांच श्रुत केवली हुए। वर्ष १४ लों, नन्दी वर्ष १६ लों नन्दिमित्र, वर्ष २३ लो अपराजित, वर्ष १६ लों गोवर्द्धन, वर्ष १८ लो भद्रवाहु । इनका समुचित काल वर्ष १०० । पीछे १० पूर्वधारी साधु भये । वर्ष १८ लों विशाखाचार्य, वष १६ लों प्रोष्ठिलाचार्य, वर्ष १२ लो जयसेन, १६ वर्ष लों नागसेन, वर्ष १६ लों सिद्धार्थाचार्य, वर्ष १८ लों धृतिषणाचार्य, वर्ष १३ लों बिजयाचार्य, वर्ष २० लो बृद्धिलिङ्गाचार्य, वर्ष १४ लों गंगदेव, वर्ष १६ लों धर्मसेन, इनका काल वर्ष १८३। पीछे ग्यारह अङ्गधारी भये, वर्ष १८ लों नक्षत्राचार्य, वर्ष २१ लों जयपालाचार्य, वर्ष ४६ लों पांडकाचार्य, वर्ष १४ लो धवलसेनाचार्य, वर्ष ३२ लों कंशाचार्य, इनका काल वर्ष १३२ हुआ। पीछे १० अङ्गधारी ४ आचार्य हुए। वर्ष ६ लों समुद्राचार्य, वर्ष १८ लों यशोभद्राचार्य, वर्ष २३ लों भद्रबाहु, वर्ष ५० लों लोहाचार्य, इनका काल बर्ष ६७ । इन पार्छ एकांगधारी रहे वर्ण २८ लों अर्हद्वल्या चार्य, (२) विशाखा चार्य (३) गुप्तिगुप्त ये तीन नाम धारी यहाँसे संघ ४ भये । मूल संघ में भये प्रथम १ नन्दी संघ, २ देव संघ, ३ सिंह