Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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स्वर सहयोग रहा। ये आचार्य जिनेश्वर के अनुज थे, किन्तु व्याकरणक्षेत्र में इनकी प्रतिभा अनुपमेय रही। सचमुच, ये बुद्धिनिधान थे।
जीवन-वृत्त
प्रभावक चरित के अनुसार आप कृष्ण नामक ब्राह्मण के पुत्र थे, और इनका जन्म-नाम श्रीपति था। इनके भाई का नाम श्रीधर था। यही दोनों भाई भविष्य में दीक्षित होकर श्रीपति बुद्धिसागर के नाम से एवं श्रीधर जिनेश्वर के नाम से प्रख्यात् हुए । बुद्धिसागर के गुरु का नाम वर्धमानसूरि था। इनकी स्मरण शक्ति शैशव काल से ही कुशाग्र थी। प्रभावक-चरितकार के अनुसार तो आचार्य जिनेश्वर एवं आचार्य बुद्धिसागर दोनों ही आचार्य अणहिलपुर पत्तन गये थे और उन्होंने चैत्यवासियों पर विजय प्राप्त की। अतः बुद्धिसागर जिनेश्वर जैसे ही प्रखर विद्वान, तेजस्वी और धर्मनिष्ठ थे। प्रभावक चरित के उल्लेखानुसार तो बुद्धिसागरसूरि भी जिनेश्वरसूरि के साथ गये थे और जब वे गये थे तब दोनों आचार्य पद पर प्रतिष्ठित थे। जबकि उपाध्याय जिनपाल ने लिखा है कि अणहिलपुर पत्तन के वाद-विवाद में जीतने के पश्चात् बुद्धिसागर को आचार्य पद प्रदान किया गया और उसी समय उनकी बहिन आर्या कल्याणमति को "महत्तरा” पद दिया गया।
साहित्य __ आचार्य बुद्धिसागरसूरि एक उद्भट विद्वान् थे। साहित्यलेखन उनके जीवन की प्रमुख प्रवृत्ति थी। आचार्य वर्धमानसूरि रचित 'मनोरमाकहा' की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि बुद्धिसागरसूरि एवं उनके अग्रज जिनेश्वरसूरि ने व्याकरण, छन्द, काव्य, निघण्टु, नाटक, कथा, प्रबन्ध इत्यादि विषयक प्रन्थों की रचना की है, किन्तु अभी तक एतद् विषयक ग्रन्थ प्राप्त नहीं हो पाये हैं। जिनेश्वर के तो
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