Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
View full book text
________________
शंका-बांका के वंशजों से सेठिया, काला, गोरा, बोंक, सेठ दक ये छः गोत्र निकले
1
जैसलमेर के राव जैतसी माटी का पुत्र केल्हण कुष्ठ रोग से पीड़ित था, जैतसी के निवेदन पर आचार्य जिनदत्तसूरि जैसलमेर पधारे। आचार्य श्री की केल्हण के शरीर पर दृष्टि पड़ने से उसका शरीर कोढ़ मुक्त हो गया । केल्हण आचार्य श्री का परम भक्त बन गया । आचार्य श्री ने सं० १९८७ में केल्हण से राखेचा गौत्र स्थापित किया । केल्हण के वंशज पुगल गाँव में जाकर रहने लगे । अतः पुगलिया कहलाये ।
मुलतान नगर में मूंधड़ा महेश्वरी धींगड़मल के पुत्र लूणा को एक बार किसी सर्प ने डंस लिया था । आचार्य श्री ने उसका विषोपचार किया। वे आचार्य श्री के परम भक्त बने एवं जैनत्व स्वीकार किया । आचार्य श्री ने 'लूणा' से लूणिया गोत्र की स्थापना की ।
विक्रमपुर में सोनिगरा ठाकुर हीरसेन निवास करता था। जिसका पुत्र एक क्षेत्रपाल से सन्त्रस्त था । जिनदत्तसूरि की कृपा से वह पूर्णतया स्वस्थ हो गया और समग्र परिवार ने जैनत्व स्वीकार किया । सं० १९६७ में आचार्य श्री ने सोनिगरा गोत्र स्थापित किया । हीरसेन के पुत्र पीउला से पीपलिया गोत्र निकला ।
अबांगढ़ में पमार क्षत्रिय राजा बोरड़ शिव दर्शनाभिलाषी था । जिनदत्तसूरि ने उसे शिव के प्रत्यक्ष दर्शन करवाये। शिव ने जिनदत्तसुरि को ही सद्गुरु कहा। अतः राजा जिनदत्त का भक्त बन गया । राजा ने जैनत्व स्वीकार किया उसका वंश बोरड़ हुआ ।
सं० १९७६ में जिनदत्तसूरि ने कठोतिया ग्राम में अजमेरा नामक व्यक्ति को भगन्दर रोग से मुक्त किया था उसके जैन बनने पर उससे कठोतिया गोत्र पनपा ।
१६६