Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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एक दिन गणि सर्वदेव और मुनि सोमचन्द्र दोनों शौच-क्रिया के लिए बहिर्भूमि गये । सोमचन्द्र ने बालस्वभावानुसार एक पौधे को उखाड़ दिया। वस्तुतः सोमचन्द्र को यह जानकारी नहीं थी कि मुनि-जीवन में सचित पदार्थ को तोड़ना-मरोड़ना यथार्थतः मुनित्व की विराधना है। सोमचन्द्र ने हिंसा की भावना से पौधे को न उखाड़कर बालस्वभावानुसार उखाड़ा था, अतः वे हिंसा आस्रव से आबद्ध नहीं कहे जाएँगे। किन्तु सर्वदेव ने सोमचन्द्र को डांटा और इस भूल की पुनरावृत्ति न हो इस उद्देश्य से कहा कि साधु होकर पौधा तोड़ते हो ? ये रजोहरण और मुखवस्त्रिका मुझे दो और चले जाओ
अपने घर। ____सोमचन्द्र की प्रतिमा अप्रतिम थी। उन्होंने उसी बाल्य-लहजे में कहा कि मैं घर तो चला जाऊँगा, किन्तु आप मेरे गुरुदेव से मुझे वह चोटी वापस दिला दीजिये, जो उन्होंने दीक्षाविधि में मेरे मस्तक से ग्रहण की थी। सर्वदेव निरुत्तर और लजित हो गये। मला, टूटी चोटी पुनः दी अथवा सांधी जा सकती है ? ___ गणि सर्वदेव के पास सामान्य अध्ययन पूर्ण होने के बाद सोमचन्द्र ने सात वर्ष पर्यन्त पाटण में रहकर न्याय-दर्शन आदि का उच्च स्तरीय विद्याध्ययन किया एवं अल्पवय में भी वादियों को परास्त कर कीर्तिभी प्राप्त की।
सोमचन्द्र का आगमिक एवं सैद्धान्तिक अध्ययन हरिसिंहाचार्य ने करवाया। सोमचन्द्र अर्थात् जिनदत्त ने स्वयं इन्हें अपना शिक्षागुरु धर्म-गुरु स्वीकार किया है। सोमचन्द्र ने विविध शिक्षकों और धर्मगुरुओं से विद्या की उस सीमा को पार कर दिया था, जिससे वे वैदुष्य प्रतिमा की दृष्टि से तत्कालीन मूर्धन्य विद्वानों में एक माने जाने लगे। । गणधरसार्धशतक, गाथा ७८ ---
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