Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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कौन से भव में मोक्ष पधारेंगे । सीमन्धर ने कहा कि आचार्य अभयदेव तीसरे भव में मुक्ति को वरण करेंगे ।' यह सुनकर दोनों देव प्रमुदित हुए और अभयदेव को इस तथ्य से अवगत कराया
भणियं तित्थयरेहि महाविदेहे भवंमि तइयंमि । तुम्हाण चैव गुरवो मुत्ति सिग्धं गमिस्संति ॥
अर्थात् महाविदेह क्षेत्र में तीर्थ करों ने यह बात कही है कि तुम्हारे गुरु तीसरे भव में शीघ्र ही मोक्ष जायेंगे ।
प्रभावक चरित में अभयदेवसूरि के स्वर्गवास की समयपरक सूचना नहीं दी गई है । उसमें केवल इतना ही लिखा गया है कि 'वे पाटन में कर्णराज के राज्य में स्वर्गवासी हुए।' पट्टावलियों में अभयदेवसूरि का स्वर्गारोहण समय सूचित है । एक मत के अनुसार अभयदेव का स्वर्गवास वि० सं० १९३५ में हुआ तो दूसरे मत के अनुसार वि० सं० १९३६ में। पट्टावलियों में पाटण के स्थान पर कपड़बंज ग्राम में उनके स्वर्गवास होने का उल्लेख मिलता है ।
गोत्र-स्थापन : – आचार्य अभयदेवसूरि एक आदर्श आगमवेत्ता सन्त थे। समाज पर उनका अमिट प्रभाव था । क्षत्रियों - राजपूतों को सद्धर्म की प्रेरणा देकर उन्हें जैनधर्म का अनुयायी बनाया । प्राप्त प्रमाणों के अनुसार अभयदेव ने खेतसी, पगारिया, मेड़तवाल आदि गोत्र संस्थापित किये थे । वि० सं० १९९१ में अभयदेव ने भिन्नमाल में सनाढ्य ब्राह्मण जाति के शंकरदास को प्रतिबोध देकर उसे एवं उसके वंशजों को जैन बनाया था ।
साहित्य :- आचार्य अभयदेवसूरि एक कवि, विचारक, प्रवचनकार एवं आगम-परम्परा के बहुश्रुत विद्वान् थे । उन्होंने आगमों पर
१ तृतीये भवे सेत्स्यती । - वही, पृष्ठ-७
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