Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh

View full book text
Previous | Next

Page 204
________________ - . ७. हर खरतर-साधु २०० बार नमस्कार-मन्त्र का स्मरण करे।' योगिनियों द्वारा जो दिल्ली आदि नगरों में जिनदत्तसूरि के पट्टधरों के जाने का निषेध किया था, वह अगरचन्द नाहटा और भंवरलाल नाहटा को असंगतिपूर्ण लगता है। उन्होंने लिखा है कि जिनदत्तसूरि परम्परा के अनेक आचार्य समय-समय पर दिल्ली आदि यागिनीपीठों में गये थे। यदि सब पट्टधरों को वहां जाना निषिद्ध होता तो फिर उनका जाना संभव न था। नाहटा बन्धुओं का मानना है कि यह बात दिल्ली में जिनचन्द्रसूरिजी के योगिनी छल से (पट्टावली के कथानानुसार) स्वर्गवास हो जाने के कारण प्रसिद्धि में आई ज्ञात होती है। पूर्व वर्णित सप्त वरदान जिनदत्तसूरि को किसने दिये थे , इसके प्रत्युत्तर में भी विविध उल्लेख उपलब्ध होते हैं। प्राकृत प्रबन्धावली के अनुसार ये वर जिनदत्त की आराधना से आचार्य कच्छोलिय ने प्रदान किये थे। कतिपय पट्टावलियों में योगिनी और इन देवों के भिन्न-भिन्न वर देने और उनके फलीभूत होने में सप्त विद्वानों का निर्देश किया है। अधिकांश पट्टावलियों में ६४ योगिनियों द्वारा जिनदत्तसूरि को वरदान देनेका उल्लेख है। प्राकृत प्रबन्धावली में १ विशेष :-वृद्धाचार्य प्रबन्धावली में जो सात वरदान उल्लिखित हैं, वे यत्किचित् भिन्न हैं। उसके अनुसार- ...तेण जिणदत्तगणीणं सत्त वरा दिन्ना। तंजहा-तुह संघमज्झे एगो सड्ढो महड्ढिो होही, गामे वा नगरे वा-इय पढम वरो।१। तुह गच्छे संजईणं रिउपुफ्फ न हविस्सइ-बीओ वरो। २। तुह नामेण विज्जुलिया न पडिस्सइतइओ वरो। ३। तुह नामेण आँधीवधूलाइ परिभवो टलिस्सइ-चउत्थो वरो। ४। अग्गिथंभो पंचमो । ५। सैन्यजलथंभो छठो । ६ । सप्पविसो न पहविस्सइ । ७ । -खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृष्ठ ६२ १ युग० जिनदत्तसूरि, पृ० ५० १८२

Loading...

Page Navigation
1 ... 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266