Book Title: Khartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Akhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
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लेखकों ने इस घटना की सूचना नहीं दी है। यदि ऐसी विशिष्ट घटना घटित होती तो जिनपालोपाध्याय तो निश्चित उल्लेख करते।
जैसा कि मैं प्रारम्भ में ही सूचित कर चुका हूँ कि जिनचन्द्रसूरि के ललाट में मणि थी और उसी के कारण उनकी प्रसिद्धि "मणिधारी" के नाम से हुई है। इस प्रभावशाली मणि के सम्बन्ध में पट्टावलीकारों का कथन है कि जिनचन्द्रसूरि ने अपने अन्त समय में श्रावक वर्ग से कहा था कि अग्नि संस्कार के समय मेरी देह के सन्निकट दुग्ध-पात्र रखना जिससे वह मणि निकल कर उसमें आ जायगी परन्तु श्रावक वर्ग गुरु-विरह से व्याकुल होने के कारण यह विस्मृतकर बैठे और भवितव्यता से वह मणि एक योगी ने हस्तगत कर ली। जिनचन्द्रसूरि के साथ मणि की जो अवधारणा की गई है वैसी ही अवधारणा ललितविजय विरचित 'यशोभद्रसूरि चरित्र' में यशोभद्रसूरि के विषय में पायी जाती है। यथा___ 'आचार्य यशोभद्रसूरि अपने ज्ञान का उपयोग देकर बोले–मेरी ६ माह की आयु शेष है। मेरे मस्तक में एक प्रभावशाली मणि है, उसे लेने के लिए एक योगी अनेक उपाय करेगा, परन्तु तुम पहले ही मेरे मृत शरीर में से उस मणि को निकाल लेना और पीछे अग्नि-संस्कार करना-इस तरह की सूचना भक्त श्रावक को देकर विक्रम सं० १०३६ में आचार्य यशोभद्रसूरि समाधि पूर्वक स्वर्गारूढ़ हुए। आचार्य का स्वर्गवास सुनकर एक योगी तत्काल अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए वहाँ आ पहुँचा। उसने आचार्य के मस्तक की मणि ग्रहण करने के लिए अनेक प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे यह बात ज्ञात हुई कि मणि तो पहले ही किसी ने निकाल ली है और वह मुझे कोई उपाय करने पर नहीं मिलेगी, तब निराश दुःख को न सहन करने के कारण उस योगी की हृदय गति रुक गयी।'
मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी बड़े प्रतिभाशाली थे, अतः खरतर
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