Book Title: Jay Mahavira Mahakavya
Author(s): Manekchand Rampuriya
Publisher: Vikas Printer and Publication Bikaner

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Page 135
________________ किन्तु स्वरूप-दृष्टि जब जगती __ एक सभी लगती है। जड-जगम मे भेद न रहता प्रीति अचल पगती है। काम-क्रोध सब जड पदार्थ है उससे भिन्न जगत मे। आत्मलीन ही रहता केवल भापित ज्ञान सतत् मे ।। अन्तर मे ही मोक्ष और बन्धन का द्वार छिपा है। अपने हाथो ही मगल औ सव सहार छिपा है। जो विनाता वह ही आत्मा ___ आत्मा ही विनाना। गद्ध ज्ञानमय दर्शन से यह तत्त्व मनुज हे पाता।

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