Book Title: Jay Mahavira Mahakavya
Author(s): Manekchand Rampuriya
Publisher: Vikas Printer and Publication Bikaner

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Page 134
________________ 132 / जय महावीर सुना कि कोई महावीर हैतीर्थकर वन तपोनिष्ठ सर्वज्ञ, ज्ञान के दीपक नए जलाए ॥ सुनकर उनके अह भाव को आए । गहरी चोट लगी थी । उनके मन मे कोई भीषणपातक खोट जगी थी । शास्त्रार्थं वे करने आये उस क्षण भरी सभा मे । आकर लेकिन लगे डूबने उनकी ज्ञान विभा मे ॥ महावीर ने कहा कि आत्मा अन्तस्तत्त्व प्रबल है । शेप सभी कुछ द्रव्य, सृष्टि मे - मन से बड़ा निवल है ॥

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