Book Title: Jain Subodh Ratnavali Author(s): Hiralal Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad View full book textPage 9
________________ चन्द्रजीको प्रबल असरकारक हुवा, और तूर्त पत्नी पुत्र परिवारकी आज्ञा संपादन कर संवत् १९१४ के ज्येष्ट शुक्ल पंचमीको अपने साले देवीलालजीके साथ दिक्षा अंगिकार की. गुरुभक्ति कर ज्ञानके प्रेमी बने, और शांत दांत क्षांत शुद्धाचारी होकर जिनशासनको प्रदिप्त करने लगे. प्रामानुग्राम उग्र विहार करते हुवे संसारी कुटुम्ब उद्धारार्थ, संवत् १९२० में पुनः कंजरडा ग्राममें पधारे और सदुपदेशसे पत्नी और तीनही पुत्रों को वैरागी बनाये. प्रथम राजांबाईने आज्ञा देतीनों पुत्रोंको सहर्ष दिक्षा दिलाई, और फिर आपने भी महासतीजी श्री रंगूजीके पास दिक्षा धारन की. फिर ये सब गुरु और गुरुणीजीकी भक्ति करते हुवे यथाशक्ति ज्ञान संपादन करते हुवे विशुद्ध तपसंयमसे अपनी आत्माPage Navigation
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