Book Title: Jain Subodh Ratnavali Author(s): Hiralal Maharaj Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad View full book textPage 6
________________ थे, जिन्होंने अनेक सूत्रों जो कि गहन ज्ञान के सागर तुल्य थे, उन ग्रन्थों की रचना कर जगदुद्धारार्थ रखगये हैं; तदपि अर्वाचीन कालकी स्थिति बडी शोचनिय हो रही है, श्रेष्ट ज्ञानकी दिनोदिन हानि हो रही है, तत्वज्ञानमय कठिन विषयोंके समझनेवाले बहुत ही थोडे रहगये हैं; और एक मतके अनेक मत और बाड़े हो गये हैं. जगत्की ऐसी स्थिति देख तत्वप्रेमी दयासिन्धू महान पुरुषोंने सद्ज्ञानका प्रचार करने के आशयसे प्राचीन सत्य शास्त्रोंका पुनरुद्धार किया, और उनके गहन अर्थोंकों देशी भाषामें सरल बनाये; और संगितके रागियोंके लिये का. व्य रूपमें सत्शास्त्रानुसार शान्त वैराग्यादि रससे भरपुर चरित्र, स्तवन, सज्झाय, छन्द, लावणी, सवैया, गजल इत्यादि बनाये. ऐसे उत्तम स्तवना:Page Navigation
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