Book Title: Jain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Author(s): Shreepalchandra Yati
Publisher: Pandurang Jawaji
View full book text
________________
द्वितीय अध्याय ।
२५
द्वितीय अध्याय ।
प्रथम प्रकरण। चाणक्यनीतिसारदोहावलि ।
मङ्गलाचरण । श्रीगुरुदेव प्रताप से, होत मनोरथ सिद्धि । धन ते ज्यों तरु वेल दल, फूल फलन की वृद्धि ॥ १॥ वालबोध के कारणे, नीति करूं परकास ।
दोहा छन्द बनाय के, सुगम करूं में जास ॥२॥ भावार्थ-विद्या को बतलाकर इसभव और परभव में सुखी करनेवाले श्रीपरम गुरु महाराज के प्रताप से मनुष्य को मनोवाञ्छित सिद्धि प्राप्त होती है, जैसे मेघ के बरसने से वृक्ष, बेल, दल, फल और फूल आदि की वृद्धि होती है ॥ १ ॥ बुद्धिमानों ने संस्कृत में जिस नीतिशास्त्र को प्रकाशित किया है, उसी को मैं वालकों को बोध होने के लीये दोहा छन्द में बनाकर सुगम रीति से प्रकाशित करता हूँ ॥२॥
शास्त्र पठन से होत है, कीरति इस जग मान ।
सुखी होत परलोक में, शास्त्र गुरूगम जान ॥३॥ शाम्ब के पढ़ने से इस लोक में कीर्ति होती है और जिस का इस लोक में यश है वह परलोक में भी सुखी होता है, इस लिये शास्त्र गुरु के द्वारा अवश्य पढ़ना चाहिये ॥३॥
इल्म पढ़न उद्यम करो, वृद्ध काय पर्यन्त ।
इल्म पढ़े पहुंचे जहां, नहिं पहुँचें धनवन्त ॥ ४ ॥ बुढ़ापा आ जाये तब भी विद्या पढ़ने का उद्यम करते ही रहना चाहिये, देखो! जिस जगह धनवान् नहीं जा सकता उस जगह विद्यावान् पहुँच सकता है ॥ ४ ॥
सत्य शास्त्र के श्रवण से, चीन्हें धर्म सुजान । कुमति दूर व्है ज्ञान हो, मुक्ति ज्ञान से मान ॥ ५ ॥ ३ जै० सं०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com