Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 15
________________ है, वह निर्ममत्व या निर्लिप्तता का अभ्यास कर सकता है। उत्तराध्ययनसूत्र में बड़ा महत्वपूर्ण निर्देश मिलता है। उसमें पूछा गया- भावविशुद्धि से जीव क्या प्राप्त करता है ? उत्तर दिया गया- भावविशुद्धि से जीव निर्भय बनता है। एक व्यक्ति जब जागरूकता का संकल्प करता है, तो फिर भावों की शुद्धि अपने-आप हो जाती है। ___ हमारे स्थूल शरीर का संचालन कौन कर रहा है ? इस शरीर का संचालन कर रहा है- तैजस-शरीर। तैजस-शरीर के जो स्पंदन हैं, वे हमारी प्राण-ऊर्जा (Vital Force) हैं। जैन तत्त्व- विद्या में दस प्राण बतलाए गए हैं- श्रोत्रेन्द्रिय-प्राण, चक्षुरिन्द्रिय-प्राण, घ्राणेन्द्रिय-प्राण, रसनेन्द्रिय-प्राण, स्पर्शनिन्द्रिय-प्राण, शरीर-प्राण, भाषा-प्राण, मन-प्राण, श्वासोच्छ्वास-प्राण तथा आयुष्य-प्राण। आयुर्वेद और हठयोग में पांच प्राण बतलाए हैं- प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान। हमारे शरीर का संचालन विद्युत् द्वारा हो रहा है। सारी प्रवृत्ति विद्युत् द्वारा हो रही है। शरीर-शास्त्र के अनुसार हमारे मस्तिष्क को २० वॉट विद्युत् की जरूरत होती है। सबसे ज्यादा जरूरत मस्तिष्क को होती है, अपना काम चलाने के लिए। विद्युत् का उत्पादन केन्द्र है- हमारा तैजस-शरीर। तैजस-शरीर अच्छा रहेगा, तो स्वास्थ्य अच्छा होगा। तैजस-शरीर कमजोर, तो स्वास्थ्य भी कमजोर होगा। __आचारांगसूत्र का एक प्रसिद्ध वाक्य है- 'कर्म–शरीर को प्रकंपित कर।' जब तक कर्म-शरीर प्रकंपित नहीं होगा, तब तक यह स्थूल शरीर प्रकंपित नहीं होगा। हमें ध्यान में पहुंचना है, स्थूल से सूक्ष्म शरीर तक। यह हमारी प्रायोगिक ध्यान दर्पण/13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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