Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 59
________________ जगत् में आना भी पसंद नहीं होता। वे तो समझते हैं, हर नया हुनर सीखें, नया घर, नई गाड़ी, बहुत पैसा हासिल करें। वही उनका सपना होता है। दूसरा कोई सुंदर जगत् है, यह वे मानने को तैयार नहीं होते। इस तथ्य में ना ही उनकी कोई आस्था है, ना विश्वास है । इस देह के सुख के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं, पर इस आत्मा के लिए उनके पास न समय है, न रुचि । एक राजा था। उसे एक लड़का था - राजकुमार कुणाल । राजा उसे बेहद प्यार करता था। एक बार वह अपने सेनापति के साथ उसे तैरने के लिए भेजता है और सेनापति को हिदायत देता है कि चाहे कुछ भी हो पर तुम राजकुमार के कपड़े और गहने संभाल कर रखना। तैरने के दरम्यान राजकुमार डूबने लगता है । वह जोर-जोर से चिल्लाता है – 'बचाओ, बचाओ !' सेनापति वह सुनता है, पर अपनी जगह से बिलकुल नहीं हिलता है । उसी वक्त राजा वहीं से गुजरता है । राजा घोड़े पर सवार रहता है । वह राजकुमार को डूबता हुआ देखता है, तो तुरन्त पानी में कूदकर राजकुमार को बचाता है। फिर राजा सेनापति को बहुत डांटता है, पर सेनापति कहता है- “राजन्! मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन किया है । मेरा कोई कसूर नहीं है।" राजा कहता है- "मूर्ख ! ये गहने और कपड़े किस काम के, जब राजकुमार ही नहीं हो। " यह दुनिया ऐसे लोगों से भरी हुई है, जो नहीं जानते कि मुख्य क्या है और गौण क्या ? जब यह पता ही नहीं, तो निर्णय ठीक कैसे होगा ? 'सत्संग', यह शब्द 'सत्' और 'संग'- इन दो शब्दों के समन्वय से बना है, जिसका अर्थ है- सत्य का सहवास । अब यह सत्य क्या है? वह सत्य है— निराकार, नित्य, अमर आत्मा । जब तक आत्मा को अपना स्वयं का पता नहीं होता है, वह ८४ गति में घूमती रहती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ध्यान दर्पण / 57 www.jainelibrary.org

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