Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 63
________________ बोला, “ये कार्य तो मैं भी कर सकता हूँ। इसके लिए दूसरे को रखने की और पैसे देने की क्या जरूरत है?" तब वहाँ बैठे ट्रस्टियों ने मॅनेजर के प्रति तीखा कटाक्ष करते हुए मॅनेजर को घर जाने के लिए सूचित किया। उन्हें तो एक ऐसा मॅनेजर चाहिए था, जो सिर्फ मॅनेजर का कार्य करे, चपरासी का नहीं। हम सभी अनेक कार्य एक साथ करना चाहते हैं, जिससे कोई भी कार्य ठीक से नहीं होता है । मैं एक दिन घर में बैठे-बैठे T.V. पर 'श्रीकृष्ण की कहानियाँ'- यह सीरियल देख रही थी । उसमें श्रीकृष्ण और बलराम का संवाद बहुत ही मार्गदर्शक था । श्रीकृष्ण जब वृंदावन छोड़कर मथुरा सदा के लिए जाते हैं, तब उन्हें वृंदावन की गलियाँ, गोप-गोपियाँ, राधा, माता यशोदा आदि सभी की बहुत याद आती है। उन्हें कहे हुए वचन भी याद आते हैं। श्रीकृष्ण आँखों में आँसू भर वियोग पर खेद करते हैं। उसी समय बलराम वहाँ आते हैं। श्रीकृष्ण की आँखों में आंसू देखकर वे कहते हैं, “भगवन्! आपको यह शोभा नहीं दे रहा है। आप तो स्वयं भगवान् हो, फिर एक बालक के समान क्यों रो रहे हो?" तब श्रीकृष्ण वियोग के दुःख का निवेदन करते हैं। बलराम उन्हें समझाते हैं-- "यह ठीक नहीं है । गोप-गोपियाँ, राधा- ये सभी तो अज्ञानी हैं। वे सिर्फ माया, ममता, प्रेम की भाषा ही जानते हैं, पर आप तो इस माया को धूल के समान जानते हैं। आप वृंदावन में जाकर उन्हें समझा दें कि यह माया प्रेम - बंधन है। उन सबको इससे मुक्ति मिलना चाहिए । इस ज्ञान को माया, प्रेम के आगे रखना चाहिए । श्रीकृष्ण, आप तुरंत वहाँ जाकर ज्ञान का मार्ग वृंदावनवासियों को बता दें।" तब श्रीकृष्ण आंसू पोछते हुए कहते हैं— “यह मेरे लिए मुमकिन कार्य नहीं है, क्योंकि वहाँ जाने के बाद वे मुझे प्रेम की डोर से बांध देंगे। इस कारण, यह Jain Education International For Private & Personal Use Only ध्यान दर्पण / 61 www.jainelibrary.org

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