Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 126
________________ शरीर के स्थूल और सूक्ष्म स्पंदनों को देखते हैं। शरीर के भीतर जो कुछ है, उसे देखने का प्रयत्न करते हैं। शरीरप्रेक्षा का दृढ़ अभ्यास और मन के सुशिक्षित होने पर शरीर में प्रवाहित होने वाली चैतन्यधारा का साक्षात्कार होने लग जाता है तथा साधक स्थूल से सूक्ष्म दर्शन की ओर आगे बढ़ने लगता है। शरीर के वर्तमान क्षण को देखनेवाला जागरूक हो जाता है। कोई क्षण सुखरूप होता है और कोई क्षण दुःखरूप। क्षण को देखने वाला सुखात्मक क्षण के प्रति राग नहीं करता और दुःखात्मक क्षण के प्रति द्वेष नहीं करता। वह केवल देखता और जानता है। ५. चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा हमारे शरीर में १३ चैतन्य केन्द्र हैं, उन पर चित्त को केन्द्रित किया जाता है। प्रेक्षा-ध्यान की साधना का ध्येय हैचित्त की निर्मलता। चित्त को निर्मल बनाने के लिए, हमारी वृत्तियों, भावों या आदतों को विशुद्ध करने के लिए पहले यह समझना जरूरी है कि अशुद्धि कहां जन्म लेती है और कहां प्रकट होती है। यदि हम उस तन्त्र को ठीक समझ लेते हैं, तो उसे शुद्ध करने की बात में बड़ी सुविधा हो जाती है। वर्तमान विज्ञान की दृष्टि के अनुसार हमारे शरीर में दो प्रकार की ग्रंथियां हैं- वाहिनी युक्त (with duct) एवं वाहिनी-रहित (ductless)। ये वाहिनी-युक्त ग्रंथियां अन्त:सावी होती हैं। इन्हें “एण्डोक्राइन ग्लेण्ड्स'' कहा जाता है। पीनियल, पिच्यूटरी, थायराइड, पेराथायराइड, थाइमस, एड्रीनल और गोनाड्स - ये सभी अन्तःस्रावी ग्रंथियां हैं। इनके स्राव हार्मोन कहलाते हैं। हमारी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक-प्रवृत्तियों का संचालन इन ग्रंथियों द्वारा उत्पन्न स्रावों (हार्मोन्स) के माध्यम से होता है। 124/ध्यान दर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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