Book Title: Dhyan Darpan
Author(s): Vijaya Gosavi
Publisher: Sumeru Prakashan Mumbai

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Page 120
________________ में उलझता रहता है। भोजन करते समय भी अनेक बातें याद आती हैं। जिस समय जो काम किया जाता है, उस समय उसी में रहने वाला साधक होता है। जहां शरीर और मन का सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता, वहां विक्षेप, चंचलता और तनाव होते हैं। एकाग्रता में विचारों को रोकना नहीं होता, अपितु अप्रयत्न का प्रयत्न होता है। प्रयत्न से मन और अधिक चंचल होता है। एकाग्रता तब होती है, जब मन निर्मल होता है। बिना एकाग्रता के निर्मलता नहीं होती और बिना निर्मलता के एकाग्रता नहीं होती। ___ क्षण भर भी प्रमाद मत करो'- यह उपदेश है, पर अभ्यास की कुशलता के बिना कैसे संभव है कि व्यक्ति क्षण भर भी प्रमाद न करे? मन इतना चंचल और मोहग्रस्त है कि मनुष्य क्षण भर भी अप्रमत्त नहीं रह पाता। वह अप्रमाद की साधना क्या है? अप्रमाद के आलंबन क्या हैं, जिनके सहारे कोई भी व्यक्ति अप्रमत्त रह सकता है। प्रेक्षाध्यान अप्रमाद की साधना है। 118/ध्यान दर्पण - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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