Book Title: Dharm ke Dash Lakshan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 4
________________ प्रकाशकीय [चतुर्थावृत्ति] पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित डॉ० हुकमचन्दजी भारिन की लोकप्रिय कृति 'धर्म के दशलक्षण' की चतुर्थावृत्ति प्रकाशित करते हए हमे हर्प का अनुभव हो रहा है। दशलक्षण महापर्व ही एकमात्र ऐसा पर्व है जो परमोदात्त भावनायो का प्रेरक. वीतरागता का पोपक तथा मयम व माधना का पर्व है : मम्पुणे भाग्नवर्ष का जैन ममाज इसे प्रतिवर्ष बड़े ही उत्माह में मनाना है। दश दिन नक चलनवाले गम महापर्व के अवसर पर अनेक धार्मिक आयोजन होने है, जिनमे विद्वानों के उत्नमक्षमादि दशधर्मो पर व्याख्यान भी प्रायोजित किये जाने है। मब जगह मुयोग्य विद्वानों का पहुँच पाना गम्भव नही दा पाता, अत जमा गम्भीर व मामिक विवेचन उन धर्मों का हाना चाहिए, वैमा महज सम्भव नही होता है। इधर विगत पाँच दशको में पूज्य श्री कानजी स्वामी द्वारा जा अध्यात्म की पावन धाग निम्तर प्रवाहित हो रही है, उसने जैन ममाज में एक प्राध्यात्मिक क्रान्ति पैदा कर दी है। उनके उपदेशो में प्रभावित होकर लाखों लांग आत्महिन की अोर मुई है। मैकडो प्राध्यात्मिक प्रवक्ता विद्वान नैयार हुए हैं, जो प्रतिवर्ष इस अवसर पर प्रवचनार्थ बाहर जाने है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डॉ० हकमचन्दजी भारिल्ल भी उन गिने-चुने उच्चकोटि के विद्वानो में से एक है, जिन्हें पूज्य स्वामीजी में मन्मागं मिला है। दशलक्षण पर्व पर प्रतिवर्ष जहाँ भी वे जान रहे है, वहाँ दणधर्मो पर उनके मार्मिक व्याख्यान होने पर पाबाल-गोपाल मभी उनमे मीमातीत प्रभावित होते रहे है। __ अनेक प्राग्रहो-अनुराधो के बावजूद नथा उनका म्बय का विचार होने हुए भी वे व्याख्यान निबद्ध न हो मके, पर मन १६७६ में डॉ० भारिल्लजी के कन्धो पर जब हिन्दी प्रान्मधर्म के मम्पादन का भार पाया तब वे व्याख्यान निबद्ध होकर मम्पादकीयों के रूप में क्रमश. प्रान्मधर्म में प्रकाशित हुए। उन, निबन्धों का निश्चय-व्यवहार की मन्धिपूर्वक मार्मिक विवेचन जब मृबाध,

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