Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनार्मानरूपणम् अनादिसिद्धान्तेन ? अमनम्-अन्तः-अमनम् अम-गतो' इत्यस्माद ल्युट् वाच्य. वाचकरूपतया परिच्छेदः, अनादिसिद्धश्चासौ अन्तश्चेति कर्मधारयस्तेन, अर्थात्अनादिकालादारभ्येदं वाचकम् इदं वाच्यमित्येवं सिद्धः प्रतिष्ठितो योऽन्तः परि च्छेदो-निर्णयर तेन यन्नाम निष्पद्यते तत् किं-किं विधम् ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरयति-अनादिसिद्धान्तेन यन्नाम निष्पयते तदेवं विशेयम् । तथाहि-धर्मास्तिकायाघारम्यादासमयपर्यन्तानि पडू नामानि अगादिसिद्धान्तनिष्पन्नानि बोध्या नि । धर्मास्तिकायादयः प्राग्व्याख्याताः । गोगनाम्नोऽस्य भेद एवं विज्ञेयः । अशोक आदिकों को सामस्त्येन व्याप्ति नहीं है। इस प्रकार गुण निष्पन्न नाम से इस प्रधानता निष्पन्न नाम में बहुत अन्तर है। इस प्रकार से यह प्रधानता से निष्पन्न नाम है। (से कितं अणाइसिद्धतेणं) हे भदन्त ! अनादिसिद्धान्त से निष्पन्न नाम किस प्रकार का होता है ?
उत्तर--(प्रणादिसिद्धतेणं) अनादिसिद्धान्त से निष्पन्न नाम इस प्रकार का होता है-शब्दवाचक है और उसका अर्थ वाच्य है, इस प्रकार का जो वाच्य वाचकरूप से ज्ञान होता है, वह 'अन्त है। यह अन्त अनादिकाल से सिद्ध है-अर्थात् अनादि काल से लेकर यह वोचक है और यह वाच्य है-इस रूप से सिद्ध प्रतिष्ठित है-इस अनादि सिद्ध अन्त-निर्णध-से जो नाम निष्पन्न-उत्पन्न होता है वह अनादिसिद्धान्त निन्न नाम है-वह इस प्रकार से जानना चाहिये(धम्मत्यिकार, अधम्नस्थिकाए, आगामयिकाए, जीवस्थिकाए, पुग्गलस्थिकाप, अद्धासना) धर्मास्ति साय, अधर्मासिकाय, आकाशास्तिकाय, નથી આ રીતે ગુણ નિષ્પન્ન નામથી આ પ્રધાનતા નિપન્ન નામમાં બહુજ मत२ . माम मा प्रधानाबी निपन्न नाम छ. (से कि तं अणाइसिद्धतेणं) ભત! અનાદિ સિદ્ધાન્તથી નિષ્પન્ન નામ કેવા પ્રકારનું હોય છે?
6त्तर-(श्रणादिसिद्धतेणं) सनात तिथी नि०पन्न नाम ! પ્રકારનું હોય છે--વાચક છે અને તેને અર્થે વાચ્ય છે, આ પ્રમાણે જે વાચવાચક રૂપનું જ્ઞાન થાય છે તે રાત છે. આ “અંત ” અનાદિકાલથી સિદ્ધ છે. એટલે કે અનાદિ કાલથી જ આ વાચક છે અને આ વાચ્ય છે. આ રૂપથી સિદ્ધ પ્રતિષ્ઠિત છે. આ અનાદિ સિદ્ધ અંતનિર્ણયથી જે નામ નિપ્પન-ઉત્પન્ન થાય છે તે અનાદિ સિદ્ધાન્ત નિષ્પન નામ છે–તે આ प्रमाले यस. (धम्माथिकार, अधम्मत्यिकाए, आगासस्थिकाए, जीवत्थिकाए, पुग्गलत्यिकाए, अद्धासमए) याताय, अपरताय, माशास्ति
For Private And Personal Use Only