Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८५ भावप्रमाणनिरूपणम् पुरुषपदमवशिष्यान्यानि पुरुषपदानि लुप्यन्ते, बहुत्वविवक्षया बहुवचनं भवति । तथा-यथा पुरुषा इति बहुव्यक्तिविवक्षायां भवति, तथैव जातिविवक्षायामेकः पुरुषो भवति । अत्र पक्षेऽप्येकं पुरुषपदमवशिष्यान्यानि पुरुषपदानि लुप्यन्ते । परमत्रजातेर्विवक्षणात्तस्याश्चैकत्वादेकवचनम् । एवं यथा एक कार्षापणस्तथा बहवः कार्पापणाः, यथा बहवः कार्यापणास्तथा एकः कार्षापण इत्याद्यपि बोध्यम् । इत्थं सामासिकं भाव प्रमाणमुक्तम् । एतदेव दर्शयितुमाह-तदेतत् सामासिकमिति।सू.१८५॥ प्रयोग होता है और जब बहुत व्यक्ति की विवक्षा होती है तब 'बहवः पुरुषाः' ऐसा प्रयोग होता है । इस बहुवचन की विवक्षा में एक पुरुष पद अवशिष्ट रहता है और बाकी के पुरुष पद लुप्त हो जाते हैं। तथा-जिस प्रकार से "पुरुषः" ऐसा प्रयोग बहुत व्यक्तियों की विवक्षा में होता है उनी प्रकार से जाति की विवक्षा में "एकः पुरुषः" ऐसा प्रयोग होता है। इस पक्ष में भी एक पुरुष पद अवशिष्ट रहता है और अन्य पुरुष पद लुप्त हो जाते हैं । परन्तु यहां जाति की विवक्षा होने से जाति को एक होने से एक वचन होता है। इसी प्रकार से "एकः कार्षापणः तथा बहवः कार्षापणाः" इत्यादि पदों में भी जानना चाहिये । इस प्रकार यह एकशेष समास है । इस प्रकार सामासिक भाव प्रमाण क्या है यह कहा। -
भावार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने भावप्रमाण सामासिक-तद्धितज धातुज और निरुक्तिज इन चार भेदों में विभक्त किया है। इनमें स्यारे 'बहवः पुरुषा:' मा तनो प्रयास थाय छे. या मइयननी वि. ક્ષામાં એક પુરૂષ પદ અવશિષ્ટ રહે છે. અને બીજા પુરૂષ પદે લત થઈ जय छे. तमा २ प्रमाणे 'पुरुषाः' म तने प्रयास पक्षी व्यतिमानी विपक्षमा थाय छे. या प्रमाणे तिनी विपक्षामा 'एकः पुरुषः' । પ્રોગ થાય છે. આ પક્ષમાં પણ એક પુરૂષ પદ અવશિષ્ટ રહે છે. અને અન્ય પુરૂષ પદે લુપ્ત થઈ જાય છે. પણ અહીં જાતિની વિવેક્ષા હેવાથી भने जति से वाथी मे क्यन थाय छे. मी प्रमाणे 'एकः कार्षापणः' तथा 'बहवः कार्षापणाः' वगैरे ५मा ५ ४ मा प्रमाणे या એકશેષ સમાસ છે. એવી રીતે સામાસિક ભાવ પ્રમાણુ શું છે. તે વિષે સ્પષ્ટતા કરવામાં આવી છે.
ભાવાર્થઆ સૂત્રમાં સૂત્રકારે ભાવપ્રમાણને સામાસિક, તદ્ધિતજ, ધાતુજ અને નિરૂકૃતજ આ ચાર પ્રકારોમાં વિભકત કર્યું છે. આમાં પરસ્પર
For Private And Personal Use Only