Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १८० प्रतिपक्षनामनिरूपणम् २५ पर्वतशिखरस्थितजननिदासः, समागनप्रभूतपथिकजननिवासो वा, सनिवेश:समागतसार्थवाहादिनिवासस्थानम् , एतेषां द्वन्द्वः, तेषु तथोक्तेषु सन्निवेश्यमानेषुसंनिवासयत्सु सत्सु मङ्गलार्थम् अशिक्षा शिवा इत्युच्यते शिवेति शृगाली। तथाकोऽपि कदाचिन् कारण शात् 'अग्निः शीतल', विषं मधुरम्' इति ब्रवीति । तथा-कल्यपालगृहेषु 'अग्लं स्शदुकम्' इत्युच्यते । अम्लशब्दे समुच्चारिते सुरा विनश्यति, अतोऽम्दाशब्दे समुच्चारयितव्ये 'स्वादु' शब्दः समुच्चार्यते। इत्थं 'आश्रम' है। पीछे से चाहे वहां पर और भी दूसरे मनुष्यजन आकर भले ही रहने लग गये हों। धान्य की रक्षा के निमित्त किसानों द्वारा जो दुर्गमस्थान निर्मित किया जाता है, वह 'संवाह' कहलाता है। यह स्थान पर्वत की चोटी पर बनाया जाता है। अथवा जिसमें सब तरफ से आकर पधिकजन विश्राम पाते हों वह स्थान 'संवाह' कहा जाता है। जिन स्थान को इधर उधर से आये हुए सार्थवाह आदि जनों ने अपने निवास के लिये बनाया होता है उसका नाम " सन्निवेश है। 'शिवा' नाम शृगाली का है और अशिवा-यह शब्द अमंगल रूप है, परन्तु मंगलार्थक शिव शब्द वाली होने से लोग मंगलनिमित्त अशिया की जगह शिवा इस शब्द का प्रयोग करते हैं। (अग्गी नीयलो) तथा-कारणवशात् कोई कोई अग्नि पद के स्थान में शीतल शब्द का विसं महुरं) विष के स्थान में मधुर शब्द का प्रयोग भी कर देता है। लथा- (कलालघरेसु अंबिलं साउयं) कलालों के घर में मलं राहुकम्' अग्ल्ड शब्द की जगह स्वादु शब्दों को રક્ષા માટે ખેડ વડે જે દુર્ગમ ભૂમિસ્થાન બનાવવામાં આવે છે તે સંવાહ” કહેવાય છે. આ સ્થાન પર્વતના શિખર પર બનાવવામાં આવે છે. અથવા–જેમાં બધથી પશ્ચિમે આવીને વિશ્રામ મેળવે છે તે સ્થાન “સંવાહ” કહેવાય છે. સાર્થવાહ વગેરે આવીને જે સ્થાનને પિતાને રહેવા માટે વસાવે છે તે “સન્નિવેશ” છે. “શિવા” શિયાળનું નામ છે. અને
અશિવા” આ શબ્દ અમંગળ રૂપ છે. પણ મંગલાર્થક શિવ શબ્દવાળી હવાથી લેકે મંગલ નિમિત્ત અશિવાના સ્થાને “શિવા” આ શબ્દને प्रयोग ४२ . ( अग्नी सीयलो) तेम ४२वशात् टस भनि पहना स्थाने शीतल शनी ( विसं महुरं) विषना स्थाने मधुर शहने प्रयास ४२ छ. तमश (कल्लालघरेसु अंबिलं साउयं) वासोना घशमा “अम्लं स्वादुकम् ' at १६ स्थान स्वादु होन। व्यवहार ४२ छ. म
अ० ४
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