Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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0 साध्वी श्री शीतल कुंवर जी [ऋषि संप्रदाय की विदुषी एवं सेवापरायण साध्वी]
कर्तव्यनिष्ठ, सेवा की साकारमूर्ति : पूज्य आचार्य श्री आनन्दऋषि जी
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नवादहिया गजन
यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि श्रद्धय पं० रत्न आचार्यसम्राट प्रखरवक्ता श्री आनन्दऋषि जी म. के ७५ वें जन्मदिवस के उपलक्ष में एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने की योज है। यह स्थानकवासी श्री संघ के लिये सौभाग्य का विषय है। ऐसे महान कार्य में श्रद्धा के सुमन समर्पित करने का मुझे सद्भाग्य प्राप्त हुआ।
स्थानकवासी जैन समाज की परम्परा में ऋषिसम्प्रदाय का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस सम्प्रदाय में क्रियोद्धारक श्री लवजीऋषि जी महाराज, पूज्य श्री कहानऋषि जी म०, प्रातःस्मरणीय कविकुलभूषण श्री तिलोकऋषि जी म०, शास्त्र वारिधि पं० रत्नश्री रत्नऋषि जी म० और जैनाचार्य शास्त्रोद्धारक वा० ब्र० श्री अमोलकऋषि जी म० आदि बहुत ही प्रसिद्ध महामुनि हुए हैं। इन्होंने जैन समाज को उन्नति पथ पर अग्रसर करने के लिए कठिन परिषहों को सहनकर के गाँव-गाँव घूमकर धर्म-प्रचार किया और समाज को विशाल साहित्य का भण्डार प्रदान किया। हस्तलिखित शास्त्रों का अध्ययन करने में चतुर्विध संघ को होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए शास्त्रोद्धारक पं० रत्नश्री अमोलकऋषि जी महाराज ने तीन वर्षों में बत्तीस सूत्रों का हिन्दी में अनुवाद कर विज्ञ एवं अनविज्ञ सर्वसाधारण के लिए सुलभ बना दिया । स्थान-स्थान पर मिलने वाली ३२ सूत्रों की पेटियां इन्हीं महापुरुष की देन हैं। संधैक्य भावना को सुदृढ़ बनाने के लिए ऋषिसम्प्रदाय के संत, सतियों का योग जैन इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर सदैव अंकित रहेगा।
मद्रास, मैसूर, बेंगलोर आदि विकट स्थानों में ऋषिसम्प्रदाय की महासतियांजी ने पहुँचकर धर्मप्रचार किया। तमिल, तेलंगाना, कर्णाटक आदि क्षेत्रों में धर्म का प्रचार करने वाली, अनेक औषधालय, विद्यालय, धर्मस्थानक आदि की संस्थापना में प्रबल प्रेरणा देने वाली, मद्रास के “अगरचन्द्र मानमल जैन कालेज के संस्थापकों की प्रधान प्रेरिका, श्री अमोल जैन ज्ञानालय नामक धूलिया की प्रकाशन संस्था की प्राणस्वरूपा स्वर्गीय गुरणी जी पं० प्रर्वतिनी महासती श्री सायरकँवर जी म० ने उन क्षेत्रों में जो उपकार किया है, उसे स्थानकवासी जैन समाज भूल नहीं सकता। आज वे क्षेत्र मुनियों के आगमन के लिए सरल बन गए हैं। ये क्षेत्र मुनिलाभ पाने में ऋषिसम्प्रदाय के ऋणी हैं। वर्तमान में भी कईएक प्रतिष्ठाप्राप्त महासतियां हैं। कई महासतियां उच्चस्तरीय अध्ययन करके परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुई हैं और हो रही हैं। इस प्रकार ऋषिसम्प्रदाय के मुनियों और महासतियों का जैनशासन के विकास में योग रहा है। इसी संतमाला के अनमोल रत्न हैं हमारे पूज्य आचार्य पं० रत्नश्री आनन्दऋषि जी महाराज।
आपका जन्म आज से करीबन ७४ वर्ष पूर्व वि० सं० १९५७, श्रावण शुक्ला प्रतिपदा के शुभ दिवस
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आचार्यप्रवर अभिशापार्यप्रवर अभि श्रीआनन्द अन्यश्रीआनन्दकन्या५
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