Book Title: 125 150 350 Gathaona Stavano
Author(s): Danvijay
Publisher: Khambat Amarchand Premchand Jainshala

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Page 13
________________ प्रस्तावना. "यशोविजयजीए ग्रंथो रचतां एटलो खखंड उपयोग राख्यो हतो के, ते कोइ ठेकाणे चूक्या न होता. तोपण छमस्थ अवस्थाने लीधे दोढसो गाथाना स्तवन मध्ये सातमा ठाणांग सूत्रनी शाख आपी छे ते मलती नयी ते श्री भगवतीजीना पांचमा शतकना उद्देशे मालम पडे छे. आ ठेकाणे अर्थक ए "रासभवृत्ति" एटले पशुतुर गणेल छे पण नेनो अर्थ तेम नथी रासमति एटले के गधेडाने सारी केळवणो आपी होय तोपण जातिखभावने लीधे रख्या देखीने लोटो जवानुं मन थाय छे तेम वर्तमानकाले बोलतां भविष्यकाळमां कहेवानुं बोली जवाय छे." ___ आ लखाणथीज सर्वज्ञ तरीके प्रसिद्ध थवा माटे करेला दरेक प्रपंचो धुळमां मली जाय छे परंतु पुच्छग्राही-विवेकचाहीन केटलाक तेना अनुयायिओना दृष्टिपथमा आवी एक सामान्य व्यक्तिने पण सुज्ञात वावतनी उपस्थिति थती नयी एज तेओनी दुर्भव्यतानु मुख्य चिन्ह छे. आ सर्वज्ञाभिमानी रायचंद्रने एपण खवर नथी के पांचनु अग भगवती के ठाणांग अर्थकाए उपाध्यायजीनी राभसवृत्ति एटले अनाभोग एवो स्पष्ट उल्लेख करेल छे छतां पण " रासभत्ति एटले पशुतुल्य गणेल छे" इत्यादि आज कालना दुर्भाग्य शिरोमणिओए मानेला सर्वजन लखाण कया बुद्धिमानने एनी सर्वज्ञता उपर तिरस्कार उत्पन्न न करावे. खरेखर आजकालना भवाभिनंदी प्राणोओने माटे तो आवाज सर्वज्ञनी जरुर छे कारणके तेना विना तेओ पोताना ते आनंदने मेळववा भाग्यशाली न वने ___ अधिक शुं लखवु एकाक्षी मनुप्य पण रामसने रामस अने भगवतीने भगवती तरीकेज वांचे,परंतु आ अधमात्माने तो छती चक्षुए कोइ एवुज पडल फरोवळ्यु के रामसने बदले रासम अने भगवतीने वदले ठाणांग वांचवामां आव्यु खरेखर एवा अधमात्माना चक्षु उपर एका प्रकार पडल आवे ए वात कंइ आश्चर्यजनक नथी, कारणके जे वच नो एक अधमाधमना मुखथी पण न नीकली शके एवां वचनोने आलेखी केवा प्रकारना कर्गनो निकाचित बंध को हशे अने ते बंधथी तेनो आत्मा क्यारे मुक्त थशे ते ज्ञानी महाराजा जाणे, जे वचनो श्रीमद् रायचंद्र नामनां पुस्तकना पत्र १४१ मां आ प्रमाणे लखेल छे " भगवान परिपूर्ण सर्वगुणसंपन्न-कहेवाय छे, तथापि एमांय अपलक्षण काइ ओछां नथी ?" साथे साथे आ वात पण जणावधानी खास जरुरत जणायाधी जणावामां आवे छे के आज ग्रन्थकर्ता महात्माए वनावेल द्वात्रिंशत् द्वात्रिंशिका नामना ग्रन्थमा प्रथमनी दानद्वात्रिंशीकामां हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज संविज्ञपाक्षिकछे एवात बोधक "नच वदानपोषार्यमुक्तमेतदपेशलम् । हरिभद्रो घदोभाणीयतः संविमपाक्षिकः ॥१९॥" आ श्लोकने देखी धर्म संग्रहणीनी प्रस्तावनाकार आ प्रमाणे लखे छे " तदिदं प्रमाणविरहितमसंभव- . पाय च नास्मबुद्धयादर्श प्रतिफलति ।" अर्थ'आ वात प्रमाण रहित अने असंभवमाय छे अने अमारा वुद्धिरूप आदर्शमां पतिविवित थती नथी.' त्यारवाद पोतानी वातने प्रमाण

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