Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 13
________________ आशीर्वचन विक्रम सम्वत् २०१२ में आगम सम्पादन का कार्य शुरू हुआ। सम्पादन के लिए जो कल्पना की गई, उसका एक अंग था, आगमों का विषयीकरण । प्रारम्भ में आगमों के अनुवाद, टिप्पण आदि का कार्य शुरू किया। विषयीकरण का भविष्य के लिए स्थगित कर रखा था। मोहनलाल जी बांठिया ने विषयीकरण का कार्य अपने हाथ में लिया। पूरी योजना बनाई । कार्य शुरू किया। उनके कार्य को हमने देखा और आगम सम्पादन के पूरक कार्य के रूप में उसे स्वीकार किया। मोहनलाल जी विद्वान, अध्ययनशील और धर्मनिष्ठ श्रावक थे। उन्हें श्रीचन्द चोरडिया का योग मिला। इस योग ने उनके कार्य को गतिशील बना दिया। योजना बहुत विशाल है, गति मंथर है। कितने दशक और लगेंगे, कहा नहीं जा सकता फिर भी जैन-दर्शन समिति में इस कार्य के लिए उत्साह है, यह प्रसन्नता की बात है। प्रस्तुत पुस्तक योग कोश है। उनके अवलोकन से एक धारणा बनती है-इसमें संग्रह अधिक है, उनके तात्पर्य का अर्थ बोध स्वल्प है। कुछ विषयों पर पुनर्विचार करना भी आवश्यक लगता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि एक अनुसंधित्सु के लिए कोश का उपयोग है । यह उपयोगिता ही इस कार्य को समृद्धि के लिए पर्याप्त प्रमाण है। --आचार्य तुलसी १ जनवरी १९९४ जैन विश्वभारती लाडनू ( राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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