Book Title: Yoga kosha Part 2
Author(s): Mohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 20
________________ प्रस्तावना जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है तथा मूल सिद्धान्त ग्रन्थों में इसका क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन नहीं होने के कारण इसके अध्ययन में तथा इसके समझने में कठिनाई होती है। अनेक विषय के विवेचन अपूर्ण अधूरे हैं, अतः अनेक स्थल इस कारण से भी समझ में नहीं आते हैं। अर्थ बोध की इस दुर्गमता के कारण जैन-अजैन दोनों प्रकार के विद्वान् जैन दर्शन के अध्ययन में सकुचाते हैं। क्रमबद्ध तथा विषयानुक्रम विवेचन का अभाव जैन दर्शन के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा उपस्थित करता है-ऐसा हमारा अनुभव है। __ जब हमने 'पुद्गल' का अध्ययन प्रारम्भ किया तो हमारे सामने भी बड़ी समस्या खड़ी हुई। आगम और सिद्धान्त ग्रन्थों से पाठो का संकलन करके इस समस्या का हमने आंशिक समाधान किया। इस प्रकार जब-जब हमने जैन दर्शन के अन्यान्य विषयों का अध्ययन प्रारम्भ किया तब-तब हमें सभी आगम तथा अनेक सिद्धान्त ग्रन्थों को सम्पूर्ण पढ़कर पाठ-संकलन करने पड़े। इसी तरह जिस विषय का भी अध्ययन किया इसे सभी ग्रन्थों का आद्योपांत अवलोकन करना पड़ा। इससे हमें अनुमान हुआ कि विद्वद वर्ग जैन दर्शन के अध्ययन में क्यों सकुचाते हैं। सर्वप्रथम हमने पाठ संकलन को ३२ श्वेताम्बर आगमों तथा तत्त्वार्थ सूत्र में सीमाबद्ध रखना उचित समझा। ऐसा हमने किसी साम्प्रदायिक भावना से नहीं बल्कि आगम व सिद्धान्त ग्रन्थों की बहुलता तथा कार्य भी विशालता के कारण ही किया है। श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों के संकलन कर लेने के पश्चात् दिगम्बर सिद्धान्त ग्रन्थों-षट्खण्डागम, कषाय पाहुड आदि से भी संकलन किया। सर्वप्रथम हमने विशिष्ट पारिभाषिक, दार्शनिक तथा आध्यात्मिक विषयों की सची बनाई। विषय संख्या १००० से भी अधिक हो गई। इन विषयों के सष्ट वर्गीकरण के लिए हमने आधुनिक सार्वभौमिक दशमलव वर्गीकरण का अध्ययन किया। तत्पश्चात बहुत कुछ इस पद्धति का अनुसरण करते हुए हमने सम्पूर्ण जैन वाङ्मय को १०० भागों में विभक्त करके मूल विषयों के वर्गीकरण की एक रूप रेखा (देखें पृ०८ ) तैयार की। यह रूपरेखा कोई अन्तिम नहीं है। परिवर्तन, परिवर्द्धन तथा संशोधन की अपेक्षा भी इसमें रह सकती है। मूल विषयों में से भी अनेकों के उपविषय की सूची भी हमने तैयार की है। उनमें जीव-परिणाम ( विषयांकन ०५) की उपविषय सूची पृ० ११ पर दी गई है। जीव परिणाम की यह उपसूची भी परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन की अपेक्षा रख सकती है। विद्वद् वर्ग से निवेदन है कि वे इन विषय सूचियों का गहरा अध्ययन करें तथा इनमें परिवर्तन, परिवर्द्धन व संशोधन सम्बन्धी अथवा अपने अन्य बहुमूल्य सुझाव भेजकर हमें अनुगृहीत करें। ___ कतरन व फाइल करने का कार्य पूरा होने के बाद हमने संकलित विषयों में से किसी एक विषय के पाठों का सम्पादन करने का विचार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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