Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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लकारार्थ-निर्णय
२६६ ('कृति-जन्य' एवं 'गमन-जन्य' इन दोनों में विद्यमान) 'जन्यता' (सम्बन्ध) 'आकांक्षा' से प्रतीत होती है । 'मैत्र' 'कृति' (यत्न) का विशेषण है, वह ('कृति') गमन (रूप 'व्यापार') में (विशेषण है) और वह (गमन रूप 'व्यापार') 'फल' (मैत्र तथा ग्राम का 'संयोग') में (विशेषण है) तथा वह ('फल') ग्राम में विशेषण है।
कर्मवाच्य के 'मैत्रेण गम्यते ग्रामः' इत्यादि प्रयोगों में 'लकार' से ही 'यत्न' तथा 'फल' दोनों की प्रतीति होते देख कर उनमें दोनों अर्थो के लिये भिन्न भिन्न वाचकता 'शक्ति' के निर्णय के लिये नैयायिकों ने यह व्यवस्था दी कि इन प्रयोगों में 'यत्न' (कृति) का वाचक तो 'लत्व' है परन्तु 'फल' का वाचक उसका 'पात्मनेपदत्व' है । इसका अभिप्राय यह है कि कर्तृवाच्य के प्रयोगों में 'लकार' केवल 'कृति' का वाचक है-वहाँ के 'प्रात्मनेपदत्व' तथा 'परस्मैपदत्व' में वाचकता 'शक्ति' नहीं मानी जायगी। इसलिये यहाँ 'पात्मनेपदत्व' से वह 'पात्मनेपदता' अभिप्रेत है जो कर्मवाच्य के प्रयोगों में उपस्थित होती है । कर्तृवाच्य की प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले 'लकारों के प्रात्मनेपदीय प्रयोगों के लिये यह बात नहीं कही जा रही है। कर्तृवाच्य में तो 'परस्मैपदत्व' तथा 'आत्मनेपदत्व' दोनों ही केवल 'कृति' के ही वाचक हैं, 'फल' के नहीं।
[कर्तृवाच्य के प्रयोगों में शाब्दबोध का स्वरूप]
‘ग्रामं गच्छति मैत्रः' इत्यत्र तु 'ग्राम-वृत्ति-फल-जनकगमनानुकूल-कृतिमान्-मैत्रः' इति बोधः । फलं च द्वितीयार्थः। जनकत्वं संसर्गः । ग्रामश्चात्र फले विशेषणम् । तद् गमने, तच्च कृतौ, सा मैत्रे इति विशेष्यविशेषणभावभेदेनैव कर्मकर्तृ स्थलीयबोधयोविशेषः । तावन्तः पदार्थास्तूभयत्रैव तुल्याः ।।
'ग्राम' गच्छति मैत्रः' (मैत्र गाँव को जाता है) इस (कर्तृवाच्य के प्रयोग) में तो “ग्राम में रहने वाले (संयोग रूप) 'फल' के उत्पादक गमन ('व्यापार') के अनुकूल (जनक) 'यत्न' से युक्त मैत्र" यह (शाब्द) बोध होता है । (संयोग रूप) 'फल' द्वितीया (विभक्ति) का अर्थ है। (फलजनक तथा गमनानुकूल में) 'जनकता' (अथवा अनुकूलता रूप) सम्बन्ध है। यहाँ 'ग्राम' 'फल' (संयोग) में विशेषण है, वह ('फल') गमन ('व्यापार') में (विशेषण है) और गमन ('व्यापार') 'कृति' का (विशेषण है) तथा वह ('कृति') मैत्र का (विशेषण है)। इस प्रकार विशेष्य-विशेषण-भाव को भिन्नता के कारण ही कर्तृवाच्य तथा कर्मवाच्य के प्रयोगों के शाब्द-बोध में भिन्नता आ जाती है। उतने पदार्थ
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