Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंजूषा
क्रियातिपत्तौ" (पा० ३.३.१३६) के “लिङ्-निमित्ते' अंश से इसी अभिप्राय को प्रकट किया है।
लाघवेन स्थानिनाम् लकारार्थः - इस पंक्ति में नैयायिकों के उस दृष्टिकोण की ओर संकेत किया गया है, जिसके अनुसार वे 'स्थानी' (लकारों) को ही वाचक मानते है -- 'लकारों' के स्थान पर आने वाले 'आदेश' ('तिप्' आदि) को वे वाचक नहीं मानते । परन्तु प्रश्न यह है कि 'सङ्ख्या ' रूप अर्थ तो 'तिप्' प्रादि 'प्रादेशों' का ही है क्योंकि पाणिनि ने “द येकयोद्विवचनकवचने' (पा० १.४.२०.) तथा "बहुषु बहुवचनम्" (पा० १.४.२१) सूत्रों के द्वार। आदेशों में ही 'संख्या' को कहने की शक्ति मानी है। नैयायिकों के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जिस प्रकार 'काल' 'लकार' का अर्थ है, उसी प्रकार' 'सङ्ख्या ' भी 'लकार' का ही अर्थ है। पाणिनि ने 'सङ्ख्या' को लकारार्थ मानते हुए भी उसमें 'आदेशार्थता' का आरोप कर लिया है। इसलिए 'सङख्या' को भी लकारार्थ मानने में कोई कठिनाई नहीं है।
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