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(७१) हे परिघ, परम प्रियतम, सर्वरूप सर्वकाल आत्माही व्यापक है तो असमाधि क्या है, और हमारे लीये समाधि जा कही सोभी क्या कही. २४ हे मुने जे ब्रह्मावस्थिति रूप समाधिवाले तथा समदृष्टिवाले कार्यकारणभावविभागके कल्पनाही. नतावाले महात्मा लोकस्थित है तिनोंमे इस समाधि असमाधिरूप भेदके व्याजद्वारा यह आपके उत्तम वाकरचना नित्य ब्रह्मरूपोंमे विस्तार पाय सकती नही है, अर्थात् एक अद्वितीयमे ये वाणी प्रवृत्ति कर सकती नही. २५ ॥ इतिश्री नवम कमलमे राजयोगी परिघसुरघुसंवाद संपूर्ण ॥ * ॥ १ अथ दशम कमलमे विषय संबध दोनो
अनुबंधोंका कथन होवेगा ॥ अब वेदांत प्रकरणरूप जो यह विज्ञानकमलाकर नामवाला ग्रंथ है तिसके प्रारंभमे कथन करने योग्य जे अनुबंध चतुष्टय है, तिनोका निरू. पण करते है.
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