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११ ॥ शिष्य उवाच - ज्ञानवान्भी कहूं भेददृष्टि क्यों करता है तिसमे क्या कारण है जैसे अधिकारीकों उपदेश करना अनधिकारीकों नही करना यह भेददृष्टि ज्ञानी भी प्रत्यक्ष दीखपरती है सो क्यों ॥ ॥ श्रीगुरुरुवाच - ईश्वर इच्छा ही तिसमे कारण जाननी ॥ ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति । भ्रामयसर्वभूतानि यंत्रारूढानि मायया ॥ इस लोकमे स्वयं भगवानने अपनेकों ही भेदप्रवृत्ति कारण कहा है.
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॥ ननु ईश्वरको भेददृष्टि नहीकही जाती ॥ ॥ उत्तरं - ॥ " परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृ ताम ॥ इसमे क्या अभेद दृष्टि कदी है. यांते ज्ञानीयोंका इष्टदेव ईश्वरमेभी जो व्यवहार काल भेददृष्टसा ज्ञान भई तो तिससे वास्तव ब्रह्मदृष्टि ज्ञानयोंकी क्या नाश हो जावेगी. एकादशी - काव्रत नही जो अन्नभक्षणकरनेसे व्रत टूट जावेगा तैसे ज्ञान टूटता नही || जैसे स्वर्णकेज्ञानी की भूषणोंमे जैसे स्वर्ण दृष्टि नही मिटती ॥
१२ || शिष्य उवाच - भेददृष्टिले जन्ममरण के प्राप्तिरूप भय होवे है ( द्वितीयाद्वै भयं भवति ) इस श्रुति वचनसे भयके कारण भेददृष्टिमेभीज्ञानवान् क्यों प्रवृत्त होता है.
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