Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ सौवरः। १-महाभाष्य-स्वयं राजन्त इति स्वराअन्वग्भवतिव्यञ्जनम्॥ स्वर उन को कहते हैं कि जो विना किसी की सहायता से उच्चारित और स्वयं प्रकाशमान, और व्यञ्जन वे कहाते हैं कि जिन का उच्चारण स्वर के आधीन २-उच्चैरुदात्तः ॥०॥ १।२ । २९ ॥ किसी एक मुख के स्थान में जिस अच का ऊंचे स्वर से उच्चारण हो वह उदात्त संज्ञक होता है । जैसे । ओ प गवः । यहाँ अण् प्रत्यय का प्रकार उदात्त हुआ है । २॥ ३.महाभाष्य-आयामो दारुण्यमणता खस्येत्युच्चैःकराणि शब्दस्य ॥ उदात्त खर के उच्चारण में इतनी बातें होनी चाहिये (आयामः) शरीर के सब अवयवों को रोक लेना अर्थात् ढीले न रखमा (दारुण्यम्) शब्द के निकलते समय तोखा रूखा स्वर निकले और (अणता खस्य ) कण्ठ को रोक के बोलना चाहिये फेलाना नहीं। ऐसे प्रयत्न से जो स्वर उच्चारण किया जाता है वह उदात्त कहाता है । यही उदात्त का लक्षण है ॥३॥ ४-नीचैरनुदात्तः ॥ अ०॥१।२।३०॥ ___ जो किसी एक मुखस्थान में नीचे प्रयत्न से उच्चारण किया हुआ स्वर है उस को अनुदात्त कहते हैं । जैसे। औ प गवः । यहां जिम के नीचे तिौं रेखा है वेतौनां वर्ण अनुदात्त है ॥ ४ ॥ ५-महाभाष्य-अन्ववसों मार्दवमुस्ता खस्येति नीचैःकराणि शब्दस्य ॥ अनुदाप्त उच्चारण में (अन्ववसर्गः ) शरीर के अवयवों को शिथिल करदेना (मार्दवम्) कोमलता स्निग्ध उच्चारण करना ( उरुता खस्य) और कण्ठ को कुछ फैला के बोलना । इस प्रकार के प्रयत्न से उच्चारण किये खर को अनुदात कहते हैं यही इस का लक्षण है ॥ ५ ॥ ६-समाहारः स्वरितः ॥ ॥१।२। ३१॥ उदात्त और प्रबुदात्त गुण का जिस में मेल हो वह अच् स्वरित संजक होता For Private And Personal Use Only

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