Book Title: Vedang Prakash Author(s): Dayanand Sarasvati Swami Publisher: Dayanand Sarasvati Swami View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौवरः॥ उदात्त वा स्वरित हो तो उस अनुदात को स्वरित न हो। परन्तु गाग्य,काश्यप, गालव इन ऋषियों के मत को छोड़ के अर्थात् इन तीनों के मत में तो उस अनुदात को भी स्वरित हो जावे कि जिस से परे उदात्त वा स्वरित हो । परन्तु यह गाग्य अदि ऋषियों का मत वेद में प्रवृत्त नहीं होता क्योंकि वेद सनातन हैं वहां किसी का मत नहीं चलता । लौकिकप्रयोगों में गाग्य आदि का मत चल जाता है। वेद में सर्वत्र उदात्त स्वरितोदय हो तो भी अनुदात्त ही बना रहता है । जैसे। कस्य नून के तमस्यामृतानां मनामहे चार देवस्य नाम । यहाँ । देवस्य नाम । नाम शब्द आद्यदात्त के परे होने से भी 'व' उदात्त से परे 'स्य' अनुदात्त को स्वरित नहीं हुआ । तथा। न व्यं त दुकष्टयम् । यहां तकार उदात्त से परे दु अनुदात्त को आगे “कष्टय" खरित होने से भी स्वरित नहीं होता। इसी प्रकार सर्वत्र समझना चाहिये । लौकिक उदाहरण । गा ग्यं ऋषिः । यहां गाय और ऋषि दोन शब्द आद्यदात्त हैं। ऋकार उदात्त के उदय में अनुदात्त 'ग्य का स्वरित नहीं होता । गाग्य ऋषिः। और गाय आदि के मत में। गाय ऋषिः । ऐसा भी होता है । अब एकश्रुतिस्वरविषय में लिखते हैं ॥१०॥ ११-यज्ञकर्मण्यजपन्यवसामसु ॥ अ० ॥ १।२।३४॥ यज्ञकर्म अर्थात् यज्ञसम्बन्धी कम करने में जो मन्त्र पढ़े जाते हैं वहां उदात्त अनुदात्त और स्वरित को एकश्रुतिस्वर हो उदात्तादि का पृथक २ श्रवण न हो परन्तु जप करने में तथा न्यूज किसी प्रकार के वेद के स्तोत्री का नाम है वहाँ और सामवेद में उदात्तादि के स्थान में एकश्रुति न हो किन्तु तीनों स्वर पृथर बोते जावें जैसे । समिधाग्नि दुवस्यत घर्बोधयतातिथिम् । आस्मिन् हव्या जुहोतन ॥ १॥ इत्यादि मन्त्र होम करते समय स्वरभेद के विना ही पढ़े जाते हैं । तीनों स्वर के विभाग से वेदमन्त्रों का पाठ होना चाहिये इस कारण यज्ञकर्म में भी पृथक् २ उच्चारण प्राप्त था इसलिये इस सूत्र का प्रारम्भ है ॥ ११ ॥ १२-उच्चस्तरां वा वषट्कारः ॥ प्र०॥१।२। ३३॥ ___जो यज्ञकर्म में वषट्कार शब्द है वह विकल्प कर के उदात्ततर हो और पक्ष में एकश्रुतिखर होता है । जैसे । वषट्कारैः सरस्वती। वषट्कारैः सरखती। यहां उदात्त और एकथति दोनों का चिन्ह न होने से एक ही प्रकार का खर दौख पड़ता है परन्तु उच्चारण में भेद जान पड़ता है ।। १२ ॥ १३-विभाषा छन्दसि ॥ ॥ १।२ । ३६ ॥ वेदमन्त्रों के सामान्य उच्चारण करने में उदात्त अनुदात्त और खरित को त For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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