Book Title: Vedang Prakash
Author(s): Dayanand Sarasvati Swami
Publisher: Dayanand Sarasvati Swami

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौवरः ॥ ९ उदात्त होता है और उस शब्द को भी अन्तोदात्त होजाता है । गार्ग्यस्य पित यजते । यहां तृतीय वर्ण ( स्य) और द्वितीय ( ग्य) को उदात्त और (पिता यजते. यहां पूर्ववत् उदात्त होता है । इसलिये पांचवर्ण मध्य में उदात्त और आदि में एक अन्त में दो अनुदात्त रहते हैं । जैसे । गार्ग्यस्य पिता य न ते । वात्स्यस पिता य ज ते १८ १९ - ० -त्रा नामधेयस्य || जो किसी के नामवाचौ स्यान्त षष्ठ्येकवचन में उपोत्तम तृतीय वर्ण आदि हैं वे विकल्प करके उदात्त होते हैं पक्ष में जैसा प्राप्त है वैसा बना रहता है। देवदशस्य पिता यजते । यहां दत्तस्य ये तीनों उदात्त और पिता यजते । यहां पूर्ववत् उदान्त होके मध्य में छः वर्ष उदात्त और आदि अन्त में दो २ अनुदात्त हो जाते हैं जैसे । देवदत्तस्य पिता य ज ते । यज्ञदत्तस्य पिता य ज ते । और पच में देवदत्त शब्द अन्तोदात्त है सो ज्यों का त्योंही बना रहता है और । पिता यजते यहां पूर्ववत् वरित को उदान्त होजाता है जैसे । देव दत्त स्य पिता य ज ते ॥ १८ ॥ २०- देवब्रह्मणोरनुदात्तः ॥ अ० ॥ १ । २ । ३८ ॥ भा०- देवब्रह्मणोरनुदात्तत्वमेके ॥ I पूर्व सूत्र से सुब्रह्मण्या ऋचा में देव और ब्रह्मन् शब्द के स्वरित को उदात पाता है सो न हो किन्तु उस स्वरित को अनुदाप्त हो होजावे । भाष्यकार का अभिप्राय यह है कि जो देव और ब्रह्मन् शब्द को अनुदान्त कहते हो सो किन्हीं आचार्यों का मत है अर्थात् विकल्प करके होना चाहिये । देव और ब्रह्मन् शब्द आमंत्रित हैं इस से विशेष वचन आमंत्रित ब्रह्मन् शब्द के परे पूर्व आमंत्रित देव शब्द को विकल्प करके अविद्यमानवत् होने से पर आमंत्रित को जहां एक पक्ष में निघात नहीं होता वहां दोनों आमंत्रित को आयुदात्त होकर उदात्त से परे दूसरा २ वर्ण स्वरित होके उस को फिर इस सूत्र से अनुदान्त होजाता है जैसे । देवा ब्रह्माः । और दूसरे पक्ष में जहां पूर्व आमंत्रित को विद्यमान मानते हैं वहां पर आमंत्रित को निवात होकर पूर्व आमंत्रित को आयुदात्त हो 'जाता है पीछे 'दे' उदात्त से परे 'वा' अनुदात्त को खरित होके जिन के मत में अनुदात्त होता है वहां तो । देवा ब्रह्माण: । ऐसा प्रयोग, और जिन के मत में स्वरित को अनुदात्त नहीं होता वहां पूर्व सूत्र से स्वरित को उदान्त होकर । देवा ब्रह्मणः | ऐसा प्रयोग होता है । और जिन आचायों का ऐसा मत है कि देव और ब्रह्मन् शब्द समानाधिकरण सामान्यवचन हैं वहां येही दो प्रयोग होते हैं क्योंकि अविद्यमानवत् का निषेध होने से पर आमंत्रित को नित्य हो निघात होजाता है ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only

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